प्रसिद्ध संत मलूकदास को कहां प्राप्त हुआ था ज्ञान
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 75 किलोमीटर दूर कोरौना के दक्षिण पूर्व स्थित बनगढ आश्रम में प्रसिद्ध संत मलूकदास (famous saint malukdas)द्वारा स्थापित मठ सहित तमाम ऐतिहासिक(historical) धरोहरों को सजोऐ हुए है.
अपने गुरू के आदेश पर नैमिष क्षेत्र पहुंचे थे संत मलूकदास

मलूकदास जी ने अपने गुरू देवमुरारी के आदेश पर नैमिष (naimish) क्षेत्र में आये थे. चलते समय मलूकदास जी ने अपने गुरू से पूछा था. कि वहां हमे खाने को कौन देगा. तो मलूकदास जी के गुरू ने उनसे कहा था कि भगवान(god) सबको यथा समय भोजन देता है.मलूकदास अपने गुरू देवमुरारी के (दारागंज इलाहाबाद, प्रयागराज)आश्राम से चलकर नैमिष क्षेत्र के 84 कोसी(84 Kosi) परिक्रमा क्षेत्र के प्रथम पड़ाव कोरौना(first stop corona) के समीप एक विशाल जंगल में स्थित बरगद के बृक्ष की खोह में बैठ गये और भगवान सबको यथा समय कैसे भोजन देते है. इसकी परीक्षा के लिए वह मौन होकर बैठे हुए थे.
जहां प्राप्त हुआ था मलूकदास जी को ज्ञान

वहां पर कुछ चरवाहों ने अपना भोजन बृक्ष की डालो पर टांग रखा था.उसी जंगल से गुजर रहे दस्यु के दल की नजर पेड पर टगें खाने पर पडी. भूख से व्याकुल दस्यु ने खाना खाना चाहा. तो दस्यु के सरदार ने रोकते हुए कहा कि ऐसा ना हो कि इस भोजन में विष मिला हो इस लिए इस का परीक्षण कर लेना जरूरी है. दस्यु की नजर जंगल में उसी बरगद की खोह में बैठे मलूकदास जी पर पड़ी. दस्यु ने मलूकदास से उस भोजन को खाने के लिए कहा गया. तो उन्होंने मना कर दिया, तब दस्यु ने उन्हें पीट पीट कर भोजन(food) खाने के लिए बाद्ध कर दिया. बस यही से मलूकदास जी को ज्ञान की प्रात्ति हुई. इस घटना के बाद उन्होंने कहा था “अजगर करय ना चाकरी पंक्षी करय ना काम दास मलूका कह गये सबके दादा राम”
जिसके बाद वह एक संत के रूप में बिख्यात हो गये.तथा इसी स्थान पर आश्राम बनाकर रहने लगे यही से उन्होंने गुरू परम्परा को आगे बढ़ाया. जिस बट बृक्ष की खोह में बैठ कर मलूक जी को ज्ञान प्राप्त हुआ था. वह बट बृक्ष लगभग एक दर्जन की संख्या में विशाल बृक्ष के रूप में आज विद्यमान है.
मठ में आज भी सजोई रखी है मलूकदास जी की यादे,
आज भी मलूकपीठ में मलूकदास द्वारा स्तेमाल की गई शैय्या,चरणपादुका आदि मौजूद है.ततकालीन समय चूकिं यह स्थान विशाल वन क्षेत्र था. इस लिए इस का नाम वनगढ पड गया. जिसे बोलचाल भी भाषा में बनगढ़ भी कहा जाता है. मलूकदास जी द्वारा यही से गुरू परम्परा को आगे बढ़ने का काम किया.
महन्त संतोष दास खाकी वर्तमान समय में इस पीठ के पीठाधीश्वर है. इस स्थान पर मलूकदास जी द्वारा स्थापित वर्षो पुराना राधाकृष्ण मन्दिर स्थित है. जिस का जीर्णोद्धार इस आश्रम के छठवें पीठाधीश्वर बाबा ननकूदास द्वारा लगभग 300 वर्ष पहले कराया गया था. यह आश्रम आस्था का केन्द्र (This ashram is the center of faith) बना हुआ है .इस स्थान पर दूर – दूर से संतों व श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है.
यह है मलूक दास की गुरू परम्परा
मलूकदास जी के शिष्य राघवदास
राघवदास के दो शिष्य हुए द्ववारिका दास व गैवीदास
गैवीदास के शिष्य नरोत्मदास
द्ववारिका दास के शिष्य रघुवरदास
रघुवरदास के शिष्य भरतदास
भरतदास के शिष्य हरिदास
हरिदास जी के शिष्य अयोध्या दास
अयोध्या दास के शिष्य दनकूदास
दनकूदास के शिष्य बाबा चरणदास
चरणदास खाकी के शिष्य संतोष दास खाकी जो वर्तमान समय सें मलूक पीठ के महन्त है.