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कहाँ है अवध (Awadh) क्षेत्र का दुर्लभ मंदिर

कहाँ है अवध (Awadh) क्षेत्र का दुर्लभ मंदिर

मदन पाल सिंह अर्कवंशी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सीतापुर में अवध (Awadh) क्षेत्र के दुर्लभ मंदिरों में एक आस्तिक बाबा मंदिर स्थित है. इस मंदिर के अवशेष भाग में इष्टिका शिल्पकला की दुर्लभ व मन-मोहक करीगरी आज भी देखी जा सकती है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 55 किलोमीटर दूर व सीतापुर जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर विकास खण्ड गोंदलामऊ क्षेत्र के नसीराबाद गांव के पश्चिम यह प्रचाीन मंदिर  (ancient temple) स्थित है. पुरातत्व विभाग (Archeology Department) भी इसे अवधक्षेत्र की महत्वपूर्ण धरोहर मानता है. इस मंदिर का निर्माण किसने कराया इसका कोई प्रमाण नही है.लेकिन पुरातत्व विभाग (Archeology Department) द्वारा लगाये गये बोर्ड में लगभग 12वीं 13 वीं सदी में इसके निर्माण की बात दर्ज कराई गई है.

मान्यता है कि सत्युग के अंतिम समय व त्रेतायुग प्रारंभिक काम में राजा मांधता का राज हुआ करता था. उसी दौरान राजा के पूर्वजों ने यह मन्दिर बनवाया होगा. नक्काशीदार ईंटो से निर्मित यह मंदिर आस्तिक, इष्टिका अथवा अक्टीक बाबा के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर परिसर में दो बड़े व कई छोटे-छोटे मंदिर थे. जिनमें अब दो बड़े मंदिरों की दीवारें और कुछ छोटे मंदिरों की नींव ही बची है. मंदिर की ईंटो पर कुंडल, फूल, खुर ,कुम्भ व कलश बने हैं.

मंदिर में चंद्रशाल व पत्थर की आकर्षक मूर्तियां विराजित थी.जो देख रेख के आभाव में चोरी हो गई. लेकिन आज भी क्षेत्र के लोगों की इस मंदिर के प्रति अपार श्रद्धा है. पूजा-अर्चना के अलावा नव दंपती यहां आशीर्वाद लेकर वैवाहिक जीवन की शुरुआत करते हैं.

Awadh क्षेत्र की  ऐतिहासिक धरोहर

पुरातत्व विभाग (Archeology Department) के द्वारा मंदिर के परिसर व मंदिर के बाहर लगाये गये बोर्ड के अनुसार इष्टिका शिल्पकला का यह दुर्लभ मंदिर अवधक्षेत्र की महत्वपूर्ण धरोहर है. जिसे सहेजने को विभाग ने इसे सरंक्षित किया है उसके बावजूद इस मंदिर की मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं. आस्तिक बाबा मंदिर के करीब एक विशाल टीला है. यह टीला भी अपने आप में ऐतिहासिक विरासत संजोए है. टीला भी पुरातत्व विभाग (Archeology Department) की देखरेख में है.

आस्तिक बाबा मंदिर के बाकी अवशेष की देख रेख कर इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजा जा सकता है. पास के गांव नसीराबाद में रहने वाले रामविलास बताते हैं, कि हम लोग बचपन से मंदिर को इसी रूप में देखते आ रहे हैं.पूर्वजों से इसके बारे में बस कहानियां सुनी हैं, कि राजा मांधाता के पुरखों ने इसे बनवाया था. ग्रामीण सुरेन्द्र कहते हैं कि इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.जिससे बचे खंडहर भी देखरेख न होने से गिरते जा रहे हैं.

राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है मन्दिर

उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग लखनऊ (Archeology Department Lucknow) द्वारा लगाये गये बोर्ड में लिखा है कि आस्तिक,अस्टिका अथवा औक्टीक बाबा नाम से प्रशिद्ध यह मन्दिर राज्य संरक्षित मन्दिर है. नक्कासीदार ईटो से निर्मित इस मन्दिर समूह में मुख्य मन्दिर के अतिरिक्त छोटे छोटे और मन्दिर निर्मित किये गये थे.वर्तमान में एक छोटे मन्दिर का कुछ भाग ध्वस्त हो गया है. शेष मन्दिर की केवल तलछन्द योजना ही अवशिष्ट है. मुख्य मन्दिर के निचले भाग (वेदीबन्ध) को स्थापत्य के शास्त्रीय आधार पर खुर,कुम्भ,कलश आदि सुन्दर गढ़नों से सुसज्जित किया गया है.

बीच का भाग (जंघा) छोटी छोटी चन्द्रशालाओ से अलंकृत करके उसे बहुत आकर्षक बनाया गया है. सबसे उपरी भाग(शिखर) धोस्त हो गया है.शिखर पंचरथ प्रकार का है शैली की दृष्टि से यह लगभग 12 वीं 13 वीं सती ई. का है. इष्टिका शिल्प कला का यह दुर्लभ मन्दिर अवध (Awadh) क्षत्र की एक महत्वपूर्ण धरोहर है.

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