Surya Satta
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जहाँ मै सम्रग मन को सहेजें, तेरे उपवन की हो जाऊँ कोयल

उपवन की कोयल

 स्वेता गुप्ता, मलावी 

कविता :

क्या तुम बन पाओगे ?
मेरे लिए विशाल आकाश,
जिसमें समा जाऊँ ,
तुझसे मिल आऊँ ।

क्या तुम नाप सकोगे ?
दरिया की गहराई ,
जहाँ तेरे अंक में ,
चैन से भरी हो अंगंराई।

क्या तुम फैला सकोगे ?
फौलादी हाथो को फूल सा कोमल ,
जहाँ मै सम्रग मन को सहेजें,
तेरे उपवन की हो जाऊँ कोयल।

क्या बन पाओगे गंभीर ?
वहाँ तुम, तुम ना रहों ,
यहाँ मै, मै ना रहु,
दूर से ही सही एक दुजे को अधीर।

क्या तुम स्वीकार कर पाओगे?
हाँ, चलो दिया तुझे अधिकार,
मुझे है आज भी यकीं ,
हाँ हाँ, तुम कर पाओगे।

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