जब लगाएंगे यह गुलाल, फगुआ में चेहरे निखर कर हो जाएंगे लाल
समूह की महिलाओं के हर्बल गुलाल होली को बनाएंगे सतरंगी
सीतापुर। इस बार की होली में सीतापुर का हर्बल गुलाल भी फिजाओं में अपना रंग बिखेरेगा। फगुआ की दस्तक के साथ ही बिसवां और मछरेहटा ब्लॉक के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने हर्बल गुलाल बनाने का काम तेज कर दिया है। सब्जियों और फूलों से तैयार किए गए इस गुलाल में किसी भी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। जिससे इस गुलाल के चेहरे पर लगते ही चेहरा निखर कर और लाल हो जाएगा। अधिकारियों से लेकर आमजन तक खतरनाक रसायनयुक्त रंगों की जगह प्राकृतिक तरीके से तैयार किए गए इसी हर्बल गुलाल से होली खेलेंगे।
बिसवां और मछरेहटा ब्लॉक में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं विभिन्न प्रकार के फूलों की पत्तियों को सुखाकर प्रोसेसिंग यूनिट में पीसकर गुलाल तैयार कर रही हैं। फूलों के साथ ही पालक, चुकंदर, गाजर, हल्दी और आरारोट को भी प्रोसेस कर इसमें मिलाया जा रहा है। इस गुलाल में किसी भी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। बिसवां ब्लॉक के पुरैनी गांव में राष्ट्रीय आजीविका मिशन द्वारा संचालित लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह एवं मछरेहटा ब्लॉक के गोड़ा गांव के ज्योति महिला स्वयं सहायता समूह का संचालन सुनीता वर्मा द्वारा किया जा रहा है। इन दोनों समूहों की अध्यक्ष सुनीता वर्मा बताती है कि समूह में 11 महिलाएं हैं। समूह द्वारा तैयार किए गए हर्बल गुलाल की कीमत बाजार में बिकने वाले आम गुलाल की तुलना में काफी कम है। समूह की महिलाएं इसे कम से कम लाभ पर बेच रहीं हैं। वह बताती हैं कि एक किग्रा गुलाल बनाने में 160 रुपए की लागत आती है और वह लोग इसे 200 रुपए प्रति किग्रा की दर से बेच रहीं हैं। वह बताती हैं कि अभी 50 किग्रा. गुलाल को कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से लखनऊ भेजा गया है। इसके अलावा जिला, तहसील और ब्लॉक स्तरीय अधिकारियों से लगातार संपर्क किया जा रहा है, उनकी मांग के अनुसार उन्हें भी इस गुलाल की आपूर्ति की जा रही है। इसके अलावा खुले बाजार में भी इसे बेचा जाएगा।
ऐसे तैयार किए जा रहे हर्बल गुलाल
हर्बल गुलाल बनाने के लिए समूह की महिलाएं फूल, फल एवं पत्तियों का उपयोग कर रही हैं। हरे रंग के लिए पालक, गुलाबी के लिए गुलाब के फूल, पीले और भगवा रंग के लिए पलाश एवं गेंदा फूल, लाल रंग के लिए चुकंदर और अन्य रंगों के लिए चंदन सहित अन्य प्रकार के फूल एवं पत्तियों के रंगों का उपयोग किया जा रहा है। विभिन्न प्रकार के फूल, पत्ती और फलों को सबसे पहले गर्म पानी में उबाला जाता है और उसके बाद मिक्सर में पीसकर इसका मिश्रण तैयार किया जाता है। फिर आरारोट के आटे में मिलाकर इसे अच्छी तरह गूंथा जाता है और इसे ट्रे में फैलाकर सुखाने के बाद इससे अच्छी प्रकार पीसने के पश्चात उसमें चंदन, नायसिल पाउडर और थोड़ा सा नेचूरल फरफ्यूम मिलाकर इससे हर्बल गुलाल तैयार किया जा रहा है।
सिंथेटिक रंगों से संक्रमण का खतरा
सीएमओ डॉ. मधु गैरोला का कहना है कि होली पर इस्तेमाल होने वाले तमाम रंग सिंथेटिक होते हैं। इनमें लेड ऑक्साइड, कॉपर सल्फेट, डाई और पिसा हुआ कांच मिला होता है। इन रासायनिक रंगों के प्रभाव से नर्वस सिस्टम, किडनी और रिप्रोडक्टिव सिस्टम को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे बीमार पड़ने और संक्रमण का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है। गर्भवती महिला अगर इसके संपर्क में आती है तो उसे समयपूर्व प्रसव, बच्चे का वजन कम होना समेत गर्भपात का खतरा हो सकता है। रसायनयुक्त रंगों की जगह होली खेलने के लिए हर्बल रंग सबसे अच्छे होते हैं। ऐसे में इन रंगों के बजाय हर्बल रंगों से होली खेलना चाहिए।