अभी देश की बुनियादों की मिट्टी हटी नही है, अभी हमारे भारत की उर्वरता घटी नही है
साहित्य।
विश्व गुरू था जो,जो जग का मुकुटभाल था जग में।
जो गाँधी की सत्यवादिता की मिशाल था जग में।
भगत सिंह की जो पावन कुर्बानी ने सौंपा था।
जो अखण्ड भारत झाँसी की रानी ने सौंपा था।
क्या वह भारत,भारत कहने लायक आज बचा है।
नहीं-नहीं उस जगह आज तम का साम्राज्य मचा है।।
नेहरू ने जिसके भविष्य का जो सपना देखा था।
लालबहादुर ने जिसमें सबको अपना देखा था।
जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस हुआ करते थे।
जहाँ चंद्रशेखर के सद् उद्घोष हुआ करते थे।
क्या वह भारत उतना ही गरिमामय आज बचा है।
नहीं-नहीं उस जगह आज तो ऊहापोह मचा है।।
जो दादा भाई नौरोजी पर गर्वित रहता था।
जो बिस्मिल,ऊधम से प्रतिक्षण ऊर्जस्वित रहता था।
खुदीराम जैसों की जिसमें थी सम्मिलित जवानी।
जिसमें अलख जगाते रहते थे जे०बी० कृपलानी।
क्या उस भारत में कोई भल मानुष आज बचा है।
नहीं-नहीं उस जगह आज असुरों का शोर मचा है।।
वीर शिवाजी की गाथाएँ जहाँ ध्वनित होती थीं।
राणा जैसी जहाँ पुरुष हस्तियाँ जनित होती थीं।
जहाँ पे ऋषि निजअस्थि राष्ट्रहित दान किया करते थे।
जहाँ सभी धर्मों का सब सम्मान किया करते थे।
क्या उस भारत में पहले सा गौरव आज बचा है।
नहीं-नहीं उस जगह आज भीषण विध्वंश मचा है।।
जो वैभव की पराकाष्ठा पर था,जो आली था।
जो पृथ्वी पर निज क्षमता में महाशक्तिशाली था।
जिसके सम्मुख दुनिया घुटने टेक दिया करती थी।
जिसकी शक्ति देखकर शायक फेंक दिया करती थी।
क्या वह भारत वैसा ही ताकतवर आज बचा है।
नहीं-नहीं उस जगह आज गृह-गृह में युद्ध मचा है।।
जहाँ की मिट्टी से जन जन का सिर्फ एक नाता था।
जहाँ कुरानों रामायणों को साथ रखा जाता था।
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई जहाँ थे भाई भाई।
जहाँ न होती एक दूसरे में थी कभी लड़ाई।
क्या उस भारत में वह भाईचारा आज बचा है।
नहीं-नहीं उस जगह आज आपसी विवाद मचा है।।
आओ आज विचार करें,भारत लाचार नही है।
अभी देश की इतनी भी हालत बेकार नही है।
लाख लुटी हो देश की दौलत अंदर से बाहर तक।
लाख हुआ हो पतन देश का धरती से अंबर तक।
अभी देश की बुनियादों की मिट्टी हटी नही है।
अभी हमारे भारत की उर्वरता घटी नही है।।
अभी तोड़ सकता है भारत इस दुख की माया को।
अभी बदल सकता है भारत,भारत की काया को।
खोयी हुई उषा की लाली अभी लौट सकती है।
भारत में वह ही ख़ुशहाली अभी लौट सकती है।
अभी न कोई भी ये समझे रीता देश बचा है।
अभी बहुत कुछ प्यारे इस भारत में शेष बचा है।।
~ दुष्यन्त व्याकुल ~