हस्त निर्मित हर्बल धूपबत्ती से मच्छर भगाएं और घर महकाएं
बिसवां की महिलाओं ने गाय के गोबर व अन्य सामग्री से बनाई मच्छररोधी क्वायल
सीतापुर : बाजार में बिकने वाली मच्छररोधी क्वायल से निकलने वाला धुआं मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है. इसका धुआं इतना खतरनाक है, कि इससे कई बार लोगों की जान तक चली गई है. लेकिन इस सबके बीच एक अच्छी खबर यह भी है कि बिसवां क्षेत्र की कुछ महिलाओं ने हर्बल मच्छररोधी धूपबत्ती तैयार किया है. यह विशुद्ध देशी नुस्खा मच्छर और मच्छरजनित बीमारियों से परेशान लोगों को खूब भा भी रहा है. यह क्वायल मच्छरों को भगाने के साथ ही घर के वातावरण को भी शुद्ध कर रही है. जिले के आला-अफसरों की यह पसंद भी बनी हुई है.
ज्योति महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया और उसके बाद स्वनंद गो विज्ञान केंद्र, नागपुर से मच्छररोधी धूपबत्ती बनाने का प्रशिक्षण लिया. इस प्रशिक्षण के बाद उन्होंने धूपबत्ती बनाने का काम शुरू किया. समूह की अध्यक्ष सुनीता देवी बताती हैं कि जब उन्होंने मच्छर भगाने वाली हर्बल धूपबत्ती बनाना शुरू किया तो पहले इसकी शुरूआत छोटे स्तर पर हुई लेकिन, कुछ समय बाद मांग बढ़ी तो उत्पादन भी बढ़ाया गया.
अभी प्रति माह करीब 10 किलो धूपबत्ती तैयार की जा रही है. जिसे मुख्य विकास अधिकारी अक्षत वर्मा, राष्ट्रीय आजीविका मिशन के उपायुक्त सुशील श्रीवास्तव सहित विकास भवन के अन्य कई अधिकारी व कर्मचारी खरीद रहे हैं। वह बताती हैं कि दस किलो धूपबत्ती तैयार होने में करीब छह हजार रुपए की लागत आती है और इसमें लगभग चार हजार रुपए का लाभ भी होता है. वह बताती है कि एक बत्ती करीब चार घंटे जलती है, और इसके बाद पूरी रात मच्छर नहीं लगते हैं.
इस तरह से होता है निर्माण
हर्बल मच्छररोधी धूपबत्ती बनाने में प्रयुक्त होने वाले गाय के गोबर को सुखाने के बाद इसे कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया में लगी मशीन में पीसा जाता है. इसके अलावा नीम, तुलसी की पत्तियां, तेज पत्ता, रार, कपूर, गुग्गल, चंदन, लोहबान, कपूर को महिलाएं घर पर ही पिसती हैं. इस इन सभी का मिश्रण तैयार कर उसमें नीम और अरंडी का तेल मिलाकर उसे पानी के साथ गूंथा जाता है. इसके बाद इससे प्लास्टिक के पाइप के टुकड़ों की सहायता से बत्ती तैयार की जाती हैं.
एक क्वायल में 51 सिगरेट के बराबर धुआं
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की राज्य मूल्यांकन समिति के अध्ययन के अनुसार मच्छर से बचने के लिए जो क्वाइल जलाई जाती है उससे काफी जहरीला धुआं निकलता है. एक मच्छररोधी क्वायल से 51 सिगरेट के बराबर जहरीला धुआं निकलता है. हर साल घर के अंदर से निकलने वाली प्रदूषित हवा की वजह से दस लाख बच्चे सांस की बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं. वह बताते हैं कि इन क्वायल में एल्यूमीनियम, क्रोमियम और टिन जैसी भारी धातुएं, कीटनाशक, पाइरेथ्रिन या सुगंधित पदार्थ (जैसे सिट्रोनेला) होते हैं जो मच्छरों को दूर भगाने या उनके काटने की संभावना को कम करते हैं. मच्छरों से बचाव हेतु सबसे कारगर एवं सुरक्षित तरीका मच्छरदानी है जिसके प्रयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.
फेफड़ों, आंखों व त्वचा पर डालता है प्रभाव
सीएमओ डॉ. मधु गैरोला का कहना है कि मच्छर भगाने वाली क्वायल को बनाने के लिए कई तरह के केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. इससे निकलने वाला धुआं स्किन और सेहत के लिए हानिकारक होता है. लंबे समय तक इस तरह की क्वायल का इस्तेमाल करने से कैंसर हो सकता है और फेफड़ों पर असर होता है. जिसकी वजह से सांस में लेने में तकलीफ और अस्थमा जैसी बीमारी हो सकती है. इससे निकलने वाले धुएं का असर आंखों पर भी पड़ता है. अगर मच्छर भगाने वाली कॉइल का धुआं आंखों में ज्यादा जाता है, तो जलन, दर्द जैसी समस्या हो सकती है. इसके धुएं त्वचा संबंधी स्किन एलर्जी जैसे खुजली, दाग और छोटे-छोटे दाने जैसी समस्या हो सकती है.
नो स्मोक क्वायल भी नुकसानदायक
बिसवां सीएचसी के अधीक्षक डॉ. अमित कपूर का कहना है कि नो स्मोक (क्वायल) में धुआं नहीं होता है और मच्छर भाग जाते हैं. लेकिन यह भी सेहत के लिए हानिकारक है. धुआं रहित क्वायल से कार्बन मोनोऑक्साइड काफी मात्रा में निकलता है. कार्बन मोनोऑक्साइड फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचा सकता है. कई लोग नो स्मोक कॉइल जलाने के बाद कमरा बंद कर लेते हैं, जिसके कारण सांस के माध्यम से केमिकल इंसान के शरीर में चला जाता है. जो लंबे समय में दिल, दिमाग और फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है. छोटे बच्चों के कमरे में कभी भी नो स्मोक कॉइल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.