Surya Satta
सीतापुर

दिव्यांग पप्पू ने नसबंदी अपनाकर पेश की मिसाल, कहा शारीरिक रूप से कमजोर पत्नी की नसबंदी कराना उचित नहीं

 

सीतापुर : वह एक पैर से दिव्यांग हैं और पत्नी दोनों पैरों से दिव्यांग हैं. मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह जीवन यापन करते हैं. चार माह पहले ही परिवार में तीसरे बच्चे का जन्म हुआ. इसके बाद इस दंपति ने परिवार नियोजन के स्थायी साधन को अपनाने पर विचार शुरू किया, आखिरकार पति ने नसबंदी (एनएसवी) कराने का निर्णय लिया. नसबंदी के लिए अधिकतर महिलाएं ही आगे आती हैं, ऐसे में एक पुरुष द्वारा लिया गया यह फैसला सराहनीय है. यह कहानी है सीतापुर की शहरी सीमा से सटे खैराबाद ब्लॉक के कर्बलापुर गांव के 36 वर्षीय पप्पू की.

 

पप्पू बताते हैं कि पांच साल की बेटी और तीन साल के बेटे के बाद चार माह पूर्व जब तीसरे बच्चे के रूप में बेटी हुई तो हम पति-पत्नी ने परिवार को सीमित करने और नसबंदी कराने का फैसला लिया. कौन ऑपरेशन कराए.. इस प्रश्न का उत्तर तलाशने के लिए हम दोनों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी. मेरी पत्नी मुझसे अधिक शारीरिक रूप से कमजोर हैं, आखिरकार मैंने फैसला किया कि मैं ही अपना नसबंदी कराऊंगा. इसके बाद माह में खैराबाद सीएचसी पर ऑपरेशन करा लिया.

 

एनएसवी लाभार्थी पप्पू बताते हैं कि इस ऑपरेशन के दौरान मुझे कोई परेशानी नहीं हुई, बस दस मिनट में आंपरेशन हो गया. इस दौरान मैं सर्जन डॉ. एसके शाही से बात करता रहा, मुझे पता भी नहीं चला कि कब मेरा ऑपरेशन हो गया. कुछ देर बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. दो-तीन दिन आराम करने के बाद अपने रोजमर्रा के काम करने शुरू कर दिए. मेरा मानना है कि लोग नसबंदी के लिए पत्नी को आगे करने के बजाय खुद आगे आएं.

 

आशा ने निभाई प्रेरक की भूमिका

 

नसबंदी कराने में गांव की आशा कार्यकर्ता हरिमोहिनी ने प्रेरक की भूमिका निभाई. वह बताती हैं कि इस दंपति ने मुझसे नसबंदी के लिए सलाह मांगी तो मैंने उन्हें बताया कि महिला के मुकाबले पुरुष नसबंदी अधिक आसान है. मैंने इस दंपति को यह भी बताया कि सीतापुर जिला मिशन परिवार विकास में शामिल है, इसलिए सीतापुर के पुरुषों को नसबंदी करवाने पर 3,000 रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में मिलते हैं.

 

हेल्थ टीम ने की पप्पू से मुलाकात

 

परिवार कल्याण कार्यक्रम के प्रबंधक जावेद खान, आशा कार्यकर्ता हरि मोहिनी और टीएसयू के प्रतिनिधि के साथ कर्बलापुरवा गांव जाकर एनएसवी कराने वाले पप्पू से मुलाकात कर उनका हालचाल पूछा। इस दौरान उन्होंने बताया कि एनएसवी के लिए प्रेरित करने वाले व्यक्ति को 400 रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में दी जाती है. उन्होंने यह भी कहा कि नसबंदी के बाद दंपति को तीन माह तक परिवार नियोजन के साधनों का उपयोग करना चाहिए.

 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

 

एसीएमओ डॉ. एसके शाही ने बताया कि समाज में एक आम धारणा है कि नसबंदी से पुरुषों में कमजोरी आ जाती है. लेकिन ऐसा कतई नहीं हैं. यह एक भ्रांति मात्र है। पुरुष नसबंदी करने की प्रक्रिया महिला नसबंदी के मुकाबले बहुत ही सरल और सुरक्षित है. इस पूरी प्रक्रिया में 10 से 15 मिनट का समय लगता है और इसमें ज्यादा से ज्यादा दो दिन के आराम की जरूरत होती है या उसकी भी जरूरत नहीं होती है. उन्होंने बताया कि यह एक मामूली आॅपरेशन है, जिस दौरान कोई चीर फाड़ नहीं की जाती और न ही कोई टांका लगाया जाता है. आपरेशन से एक घंटे बाद आदमी घर जा सकता है और 72 घंटे बाद व्यक्ति अपना रोजमर्रा का कामकाज आम दिनों की तरह कर सकता है. आपरेशन करवाने वाले व्यक्ति की उम्र 60 साल से कम होनी चाहिए. व्यक्ति शादीशुदा होना चाहिए और एक बच्चा होना जरूरी है.

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