योगी सरकार सलोनी हार्ट फाउंडेशन के साथ मिलकर हार्ट डिजीज वाले बच्चों का करेगी इलाज
लखनऊ : एम्स दिल्ली की एक्स डीन एवं पंडित बीडी शर्मा यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर प्रो. अनीता सक्सेना की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल 2 लाख 40 हजार बच्चे हार्ट डिजीज के साथ जन्म लेते हैं. इनमें से 20 प्रतिशत बच्चों को जीवित रहने के लिए पहले साल में ही हार्ट की सर्जरी की आवश्यक्ता होती है. इलाज न मिल पाने की वजह से इनमें से कई की मौत हो जाती है। मरने वाले सबसे ज्यादा बच्चे यूपी, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली से होते हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐसे मासूम बच्चों की मदद के लिए आगे आए हैं.
प्रदेश सरकार अमेरिका की सलोनी हार्ट फाउंडेशन के साथ मिलकर एसजीपीजीआई में सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजी यूनिट की स्थापना करेगी. इस यूनिट में प्रति वर्ष 5 हजार बच्चों की सर्जरी और 10 हजार बच्चों का इलाज हो सकेगा. फाउंडेशन के एक्सपर्ट्स समय-समय पर यूनिट की विजिट करेंगे और ऑनलाइन जरूरी सलाह भी देंगे. उल्लेखनीय है कि सीएम योगी के मार्गदर्शन में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 के लिए निवेश जुटाने को यूएस गए प्रतिनिधिमंडल ने सलोनी हार्ट फाउंडेशन के साथ एमओयू साइन किया है. इस एमओयू के तहत फाउंडेशन एसजीपीजीआई में 480 करोड़ रुपए की लागत से 200 बेड का पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजी सेंटर बनाकर देगी.
30 बेड के यूनिट से होगी शुरुआत
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष एक उच्चस्तरीय बैठक में अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव अरविंद कुमार ने बताया कि जीआईएस 2023 के यूएस दौरे में कैलिफोर्निया में निवास कर रहे भारतीय मूल के दंपत्ति मिली और हिमांशु सेठ ने लखनऊ के एसजीपीजीआई में बच्चों में जन्मजात होने वाली हार्ट डिजीज के इलाज को लेकर यूनिट के निर्माण की इच्छा जाहिर की. इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ 480 करोड़ रुपए का एक एमओयू साइन किया है.
इसके अंतर्गत एसजीपीजीआई में एक सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजी यूनिट का निर्माण किया जाएगा. शुरुआती चरण में 30 बेड से यूनिट की शुरुआत की जाएगी, जिसके लिए एसजीपीजीआई के डायरेक्टर आरके धीमान ने स्वीकृति दे दी है. इसके सफल क्रियान्वयन के बाद दूसरे चरण में 100 और तीसरे चरण में यूनिट का विस्तार 200 बेड तक कर दिया जाएगा. यहां पर प्रतिवर्ष इस बीमारी से जूझने वाले 5 हजार बच्चों की सर्जरी और 10 हजार बच्चों का इलाज संभव हो सकेगा. इस यूनिट के पूर्ण रूप से संचालित होने के बाद बीएचयू के साथ मिलकर सलोनी हार्ट फाउंडेशन एक और यूनिट का निर्माण कर सकती है.
बेटी की याद में बनाया फाउंडेशन
यूएस दौरे पर गए वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने मुख्यमंत्री को बताया कि फाउंडेशन की फाउंडर एवं प्रेसीडेंट मिली सेठ दिल्ली की रहने वाली हैं. वह दिल्ली में अपनी फर्म चलाती थीं जबकि उनके पति हिमांशु सेठ मल्टीनेशनल आईटी कंपनी में काम करते थे. वर्ष 2005 में उनकी छोटी बेटी सलोनी का जन्म हुआ, जिसे जन्मजात कंजेनाइटल हार्ट डिजीज (पैदाइशी दिल का रोग) की समस्या थी. दिल्ली में 2007 में पहले ग़लत इलाज़ और फिर 2010 में उसे लाईलाज घोषित कर दिया गया. इस बीमारी का भारत में इलाज संभव नहीं हो सका था. इसके चलते दंपत्ति को यूएस शिफ्ट होना पड़ा, जहां 2011 में सलोनी को स्टैनफ़ोर्ड चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल ने बचाया और वह ठीक हो गई. परंतु 2018 में पहले के इलाज की देरी की वजह से हुई कॉम्प्लिकेशंस से उन्होंने सलोनी को खो दिया.
इसके बाद दंपत्ति ने अपनी बेटी के नाम से वर्ष 2019 में सलोनी हार्ट फाउंडेशन की नींव रखी. तब से यह फाउंडेशन भारत में इस तरह की बीमारी से जूझने वाले नवजात बच्चों के इलाज का प्रबंध कर रहा है. इसी क्रम में अब वह उत्तर प्रदेश में पहली पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी यूनिट की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध हैं. वित्त मंत्री के अनुसार, फाउंडर मिली सेठ का कहना है कि भारत में इस तरह की बीमारियों के लिए ट्रेनिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और स्पेशलाइजेशन की कमी है. वहीं, यूएस के टॉप अस्पतालों की कमान भारतीय मूल के डॉक्टर संभाल रहे हैं जो उनकी मुहिम से जुड़कर भारत में इस कमी को पूरा करने को तैयार हैं.
फाउंडेशन से जुड़े हैं दुनिया के 23 टॉप सुपर स्पेशियलिस्ट
सलोनी हार्ट फाउंडेशन की फाउंडर मिली सेठ ने बताया कि उनकी संस्था से दुनिया के 23 सुपर स्पेशियलिस्ट पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजिस्ट और पीडियाट्रिक कार्डियोथोरोसिक सर्जन जुड़े हुए हैं. इनके जरिए वह भारत में इस रोग से संबंधित बच्चों के परिजनों को फ्री मेडिकल सलाह उपलब्ध कराती हैं. यूएस में डॉक्टर की इस एक सलाह की क़ीमत 2 हजार डॉलर यानी डेढ़ लाख रुपए से भी ज्यादा है. इसके साथ ही वह पैनल के डॉक्टर्स के माध्यम से बच्चों की सर्जरी भी कराते हैं. इतना ही नहीं, फाउंडेशन के माध्यम से 2020 से अब तक देश के 11 ऐसे युवाओं को एमबीबीएस कोर्स के लिए भी पूर्ण छात्रवृतियां दी गई हैं जिन्होंने नीट क्वालीफाई किया था, लेकिन उनके पास कोर्स के पैसे नहीं थे. फीस के साथ-साथ ऐसे छात्रों को लैपटॉप भी उपलब्ध कराए गए हैं. मिली सेठ ने बताया कि उनकी बेटी की सर्जरी डॉ. रेड्डी ने की थी. वह उन्हीं की तरह सर्जन बनना चाहती थी. उत्तर प्रदेश में इस तरह की गंभीर बीमारी से जूझ रहे बच्चों की मदद करके हम अपनी बेटी के सपनों को जिंदा रखने का प्रयास कर रहे हैं.