Surya Satta
सीतापुर

प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर संवेदनशील हुईं महिलाएं  

सीतापुर। इतिहास गवाह है कि अपने स्वास्थ्य को लेकर अब महिलाएं जागरूक हो रही है. जिसके चलते उनके स्वास्थ्य की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है.
 राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों में यह परिवर्तन दिखाई भी दे रहा है. हाल ही में जारी एनएफएचएस-5 के आंकड़े इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि प्रजनन, पोषण, मातृ, शिशु और बाल स्वास्थ्य को लेकर उनकी स्थिति में सुधार हुआ है.
 बाल विवाह की दर में गिरावट को भी महिला स्वास्थ्य के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर महिलाओं को जागरूक करने के लिए 10 फरवरी से गर्भावस्था जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया गया है. जिसका समापन आगामी 16 फरवरी को होगा.

बाल विवाह में आई कमी

बाल विवाह कम होने से कम उम्र में मां बनने वाली महिलाओं की संख्या में भी गिरावट आई है. एनएफएचएस-4 और 5 के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करने से पता चलता है कि अब से चार साल पहले वर्ष 2015-16 में 15 से 19 साल की आयुवर्ग की 7.3 प्रतिशत महिलाएं या तो मां बन जाती थी या फिर वह गर्भवती हो जाती थीं. लेकिन वर्ष 2020-21 में इसी आयुवर्ग की महिलाओं के संबंध में यह आंकड़ा घटकर 3.4 प्रतिशत रह गया. जिला महिला चिकित्सालय की अधीक्षक व स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. सुषमा कर्णवाल का कहना है कि बाल विवाह के चलते कम उम्र में ही लड़कियां मां भी बन रही हैं.
 कम उम्र में गर्भधारण करने से प्रजनन तंत्र को नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. किशोरी के गर्भधारण के साथ ही उसे डायबिटीज के साथ कई और स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। कम उम्र में मां बनने पर बच्चे के प्रीमैच्योर होने की आशंका भी बढ़ जाती है. इसके  साथ ही बच्चे का वजन भी कम हो सकता है  और बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास भी प्रभावित हो सकता है. कम उम्र में मां बनने से कई बार करियर ग्रोथ पर असर पड़ता है जिसके चलते मां तनाव में भी आ सकती हैं. प्रसव के दौरान होने वाली पीड़ाएं स्थायी रह सकती हैं. किसी प्रकार का संक्रमण हो सकता है या फिर गर्भाशय के फटने की आशंका भी रहती है.

माहवारी में सुरक्षा तरीकों का उपयोग

मासिक धर्म (माहवारी) के दौरान अब महिलाएं संक्रमण से बचने के लिए और बेहतर सुरक्षा तरीकों का उपयोग कर रही हैं. आंकड़े गवाह है कि माहवारी के दौरान अब महिलाएं कपड़ों के बजाए बाजार में मिलने वाले या फिर घर पर तैयार किए गए सैनिटरी नैपकिन और मासिक धर्म कप का उपयोग करती हैं. एनएफएचएस-4 और 5 के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करने से पता चलता है कि अब से चार साल पहले वर्ष 2015-16 में 15 से 24 साल की आयुवर्ग की 67.6 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान घर के सामान्य अथवा गंदे कपड़ों का प्रयोग करती थीं. उन दिनों महज 32.4 प्रतिशत किशोरियां व महिलाएं ही माहवारी के दौरान सुरक्षित साधनों का प्रयोग करती थीं. लेकिन चार सालों की जागरूकता के बाद इन आंकड़ों में काफी सुधार आया है. वर्ष 2020-21 में माहवारी के दौरान सुरक्षित साधनों का प्रयोग करने वाली महिलाओं की संख्या 55.5 प्रतिशत पहुंच गई है.

एनीमिया को लेकर आई सजगता

बीते चार सालों की बात करें तो एनीमिया (खून की कमी) की गंभीरता को भी महिलाओं ने अच्छी तरह से समझा है. एनएफएचएस-5 के अनुसार प्रसव के दौरान एनीमिया को लेकर उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके चलते 18 फीसद महिलाओं ने कम से कम 100 दिन और 9.6 प्रतिशत महिलाओं ने कम से कम 180 दिनों तक आयरन फोलिक एसिड का प्रयोग किया, जबकि वर्ष 2015-16 में यह आकड़ा क्रमश: 5.1 और 1.5 प्रतिशत ही था.

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