अब बगावत हमें क्यों करनी। ऐसी खिलाफत हमें क्यों करनी?
(दिनेश प्रसाद सिन्हा,साउथअफ्रीका से)
अब बगावत हमें क्यों करनी।
ऐसी खिलाफत हमें क्यों करनी?
भोग-विलास में गर लुटे जमा पूंजी।
ऐसी विरासत हमें क्यों करनी ?
माथे अगर सज छाए घमंड का राजा।
ऐसे खितावत हमें क्यों करनी ?
एक- दो तीन- चार हुई काफी ,
ऐसी हर शिकायत हमें क्यों करनी?
उम्र के अंतीम दहलीज पे आ गए।
फिर ऐेसी सियासत हमें क्यों करनी?
तुम्हारे अधीन क्यों कर हम रहें।
अब ऐसी इबादत हमें क्यो करनी?
वो हमारी खुशियों पे हर्षित नही हो।
फिर भी शरारत हमें क्यो करनी?
शीत-बंसत के बाद पतझड नहीं पढ़ते।
फिर ऐसी निजामत हमें क्यों करनी?
क्यों जिंदा लाश बन जाए कोई।
ऐसी इनायत हमें क्यों करनी ?