Surya Satta
ऐतिहासिक व पौराणिकधार्मिकसीतापुर

बौनाभारी में हुआ था वामन अवतार, सच्चे मन से मांगी गई मनोकामनाएं होती हैं पूरी    

सीतापुर। तीन पग में समस्त ब्रह्मांड को नापने वाले विष्णु भगवान(Lord Vishnu) ने वामन अवतार(Vamana Avatar) सीतापुर स्थित बौनाभारी गांव की धरती पर लिया था. बौनाभारी में स्थित विश्व का इकलौता वामन भगवान का सिद्ध मंदिर(Siddha Mandir) है. राजा बलि (King Bali) ने वामन भगवान को सिर्फ तीन पग भूमि दान में दी थी. बौनाभारी गांव ही वह स्थान है, जहां वामन भगवान ने विराट स्वरूप धारण कर राजा बलि को छल लिया था. मंदिर के पुजारी कृष्णकिशोर तिवारी बताते हैं पुराण में स्पष्ट रूप से लिखा है कि गोमती नदी के उत्तर में नौ किलोमीटर की दूरी पर वामन विहार स्थान होना दर्शाया गया. वामन विहार का अपभ्रंश होकर अब बौनाभारी हो गया है. गांव पर भगवान की ऐसी कृपा बरसती है कि पूरा गांव सम्पन्न है.
वामन भगवान का जन्मोत्सव
प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी भाद्र मास की वामन द्वादशी पर वामन भगवान का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस मौके पर यहां शुक्रवार और शनिवार को दो दिवसीय कार्यक्रम मनाया गया. इसमें ग्रामीणों के साथ दूरदराज के भी लोग शामिल हुए.
   जाने क्या है वामन अवतार की कथा
त्रेतायुग में सृष्टि पर अधिपत्य ‘करने के लिए राजा बलि यज्ञ कर रहे थे. जिससे देवराज इंद्र को चिंता सता रही थी कि यदि राजा बलि यज्ञ में सफल हो जाते हैं तो कहीं उनके हाथ से स्वर्ग लोक न निकल जाए. इस पर वे जगत के पालनहाल भगवान विष्णु की शरण में गए और प्रार्थना की. जिसके बाद भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर देवमाता अदिति के गर्भ से वामन देव के रूप में अवतरित हुए. और वही से भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बलि के पास गए. राजा बलि चूंकि दानवीर थे, इसलिए उन्होंने वामन देव से दान मांगने का अनुरोध किया. इस पर वहां मौजूद दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को सचेत किया कि वह ऐसा न करें, क्योंकि वह अपनी दिव्य दृष्टि से भगवान वामन को पहचान गए थे, लेकिन राजा बलि ने उनकी बात को अनसुना करते हुए वामन देव से दान मांगने को कहा. इस पर वामन भगवान ने उनसे कहा कि पहले आप इसके लिए संकल्प लो कि जो मैं मांगूगा, वह दोगे. तब राजा बलि ने संकल्प लेने के लिए पात्र उठाया तो उस संकल्प पात्र की नली में शुक्राचार्य भौरा बन कर बैठ गए, ताकि इससे जल न गिरे और राजा बलि संकल्प न ले सकें. इस पर वामन देव ने एक तिनका उठाया और उस पात्र की नली में डाला, इससे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वह पात्र से बाहर आ गए. तब राजा बलि ने संकल्प लिया तो वामन देव ने उनसे तीन पग भूमि मांगी. इस पर राजा बलि ने कहा- महाराज, आप मुझसे राजपाठ और वैभव मांग सकते थे, मात्र तीन पग भूमि ही क्यों मांगी, तब वामन देव ने अपना स्वरूप विराट किया और एक पग में आकाश व दूसरे पग में धरती व पाताल नाप लिया और राजा बलि से पूछा कि तीसरा पग अब कहां रखूं. इस पल राजा बलि ने स्वयं को आगे करते हुए कहा कि महाराज तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख सकते हैं. जैसे ही भगवान वामन ने तीसरा पग राजा बलि के सिर रख दिया. राजा बलि से प्रश्न होकर कहा हे राजन आप इस सूतल(पाताल लोक) पर अपने पितामह प्रहलाद की भांति शासन करो. और कहा मुझसे कोई वर मांग लो, तब राजा बलि ने कहा भगवन मैं चाहता हुं आप मेरे महल की रक्षा करें और मैं जिस भी द्वार से निकलू वहां आप के दर्शन हो, भगवान विष्णु ने वरदान दे दिया और राजा बलि के द्वारपाल के रूप में वहां निवास करने लगे. जब भगवान विष्णु काफी समय बाद भी वैकुंठ लोक नही पहुंचे तो मां लक्ष्मी को चिन्ता हुई, मां लक्ष्मी को देवर्षि नारद ने बताया कि राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपना द्वारपाल बना लिया है आप राजा बलि के महल जाओ और राजा बलि को अपना धर्म भाई बना कर, राजा से दान स्वरूप द्वारपाल अर्थात भगवान विष्णु को मांग लेना, मां लक्ष्मी ने ऐसा ही किया. तभी से रक्षाबंधन का त्योहार प्रथ्वी लोग कर मनाया जा रहा है.
इसलिए नहीं करना चाहिए अभिमान
भगवान विष्णु को जब यह लगा कि राजा बलि को दानवीर होने का अभिमान हो गया है, तब उन्होंने उनके अभिमान को चूर किया, इसलिए किसी भी मनुष्य को अपनी श्रेष्ठता का अभिमान नहीं करना चाहिए.

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