Surya Satta
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आज फिर मैं, बेचकर अपना ईमान और स्वाभिमान, उस दुकान पर, जहाँ तोला नहीं जाता तराजू पर,

 

साहित्य। 
आज फिर मैं,
बेचकर अपना ईमान और स्वाभिमान,
उस दुकान पर,
जहाँ तोला नहीं जाता तराजू पर,
वजन बराबर- बराबर,
कह आया उस दुकानदार से,
मेरी गलती नहीं होने पर भी,
कि अपराधी मैं ही हूँ।

आज फिर मैं,
झुक गया उसके दरवाजे पर,
कर लिया उससे समझौता,
कि नहीं छोड़ूंगा मैं तेरा साथ,
और नहीं चाहूँगा तेरा बुरा,
उसको दे दिया ऐसा लिखकर,
कि तेरा ही है मुझ पर अधिकार,
जबकि मिला नहीं है उससे कभी,
मुझको सम्मान और सहयोग।

आज फिर मैं,
देने चला गया उसको ,
अपना खून और दौलत,
अपनी खुशी और सपनें,
जिसने किया है हमेशा,
मुझको बर्बाद और बदनाम,
जिसने किया है नेतृत्व हमेशा,
मेरे विरोधियों और दुश्मनों का,
जिसने बिछाये हैं हमेशा ही,
मेरी मंजिल और राह में कांटें।

आज फिर मैं,
उसी मेरे दोस्त को,
दे आया हूँ यह दुहाएँ,
कि वह हमेशा आबाद रहे,
हमेशा खुश और स्वस्थ रहे।

 

शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847

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