ये खेल सियासी सितमगरों की तरह हैं, हम लोग तो शतरंज के मोहरों की तरह हैं
साहित्य।
कोई घिरे वजीर तो फिर आगे आएँ हम।
और उसके लिए जान की बाजी लगाएँ हम।
हर राह पे चलने की इजाजत नही हमें।
कैसे कहें कि खुद से मोहब्बत नही हमें।
ये खेल सियासी सितमगरों की तरह हैं।।
हम लोग तो शतरंज के मोहरों की तरह हैं।।
मरहम से किसी जख़्म का सीना हराम है।
होठों से मय की बूंद का पीना हराम है।
पत्थर की अंगूठी का नगीना हराम है।
बत्तर सी जिंदगी का ये जीना हराम है।
जाने यहाँ पे मुर्दा मकबरों की तरह हैं।।
हम लोग तो शतरंज के मोहरों की तरह हैं।।
राजा को अपने रूप की रानी का नशा है।
दरिया को लहरते हुए पानी का नशा है।
साहिल को समंदर की रवानी का नशा है।
हूरों को अपनी अपनी जवानी का नशा है।
जो होश में नही हैं, वो मरों की तरह हैं।।
हम लोग तो शतरंज के मोहरों की तरह हैं।।
उस्तादों औलियों की व पीरों की जिंदगी।
रांझे की दस्तरस में है हीरों की जिंदगी।
खुद को तलाशती है फ़कीरों की जिंदगी।
हर लुफ्त ले रही है अमीरों की जिंदगी।
मुफलिस तो राह भूले रहबरों की तरह हैं।।
हम लोग तो शतरंज के मोहरों की तरह हैं।।
~ दुष्यन्त व्याकुल ~