Surya Satta
उत्तर प्रदेश

वर्तमान में पत्रकारिता का होता अपराधीकरण एक चिंतन 

 

नीरज जैन

लखनऊ। वर्तमान में मीडिया की परिभाषा टीवी चैनलो की सत्यता उजागर करती है छपास से ज्यादा दिखास का शौक इंसान को ख़त्म कर रहा है और टीवी चैनल सिर्फ मनोरंजन का एक पार्यप्त साधन बनकर रह गए है. अगर आपको जल्द अमीर बनना है या फिर खोखली लोकप्रयता हासिल करनी है तो एक मीडिया हाउस खोलिये, लोगो को पत्रकारीता के मायने समझिये विज्ञापन या नकद मांगिये नहीं देने पर जोड़ तोड़ वाली खबर दिखाये बस यही है वर्तमान टीवी चैंनलों के हालात जो आपके विरुद्ध बोले उसे सरकारी तंत्र से परेशान करें.

पत्रकारिता का अपराधीकरण हो रहा: नीरज जैन

शायद, पत्रकार लोग भी इस पर मेरा साथ न दें, क्योंकि उन्हें पता है कि वे अन्याय बर्दाश्त नहीं करते और आज का प्रचलन तो अन्याय सहकर जीवन यापन करने का हैं, वह समय बीत गया, जब युवा पत्रकार संपादक जी से अपने खबर को दबाने के विरुद्ध बहस कर लिया करते थे. इसलिए मैं कहता हूँ की पत्रकारिता का अपराधीकरण हो रहा हैं और इसमें आला दर्जे के चोर, ब्लैकमेलर, बदमाश, लफूआ पत्रकारिता के नाम पर ठेकेदारी करने वालों लूटेरों की फौज आ गई है जो गांधी ,अम्बेडकर, माखनलाल जी की इस पवित्र पत्रकारिता का भी नाश करने में लगे हैं. मुझे याद है कि सन् 2003 में , मैं एक प्रतिष्ठित अखबार के लिए कार्य करता था तब उस अख़बार के कार्यलय में अचानक एक कट्टर ईमानदार भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आक्रोशित मुद्रा में प्रधान संपादक के कार्यालय में घुस गए उक्त आक्रोशित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने कड़े शब्दों में उनके अखबार में लिखित समाचार का खंडन किया और संपादक ने शांत मुद्रा में उनकी बातों को सुना क्योंकि उन्हें सच्चाई मालूम हो गई थी.

 

अब सवाल उठता है कि राज्य में कितने ऐसे अधिकारी हैं, जो संपादक के कार्यालय में जाकर अपना आक्रोश प्रकट कर सकें और यहीं सवाल कितने पत्रकारों से भी है कि क्या आप में इतनी दम है कि एक ईमानदार अधिकारी के आक्रोश को झेल लें, उत्तर नहीं है. ये बाते लिखने का मतलब क्या है? आज का अधिकारी और आज का पत्रकार, दोनों समझ गये हैं कि दोनों क्या है? दोनों भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. दोनों एक दूसरे के पोषक हो गये हैं?

जिस प्रकार राजनीति का अपराधीकरण हुआ, वैसे ही पत्रकारिता का अपराधीकरण हो गया, राजनीति के अपराधीकरण होने से भ्रष्टाचार धीरे-धीरे फैलता हैं, पर पत्रकारिता के अपराधीकरण से भ्रष्टाचार में गति आ जाती है, और ये गति ही उस राज्य व देश की समाप्ति के लिए पूर्णाहूति का कारण बन जाती हैं, राज्य सरकार को चाहिए कि पत्रकारिता का अपराधीकरण करने वालों पर सख्ती दिखाये और माफिया ,ब्लेकलिस्टेड ,व्यापरियों के चैनल व समाचार पत्रों को विज्ञापन न दे वार्ना ये दीमक समाज के साथ साथ सत्ता को भी ख़त्म कर देगी ..

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