Surya Satta
उत्तर प्रदेशलखनऊ

एक दूसरे का गुरुत्व बढ़ाना गुरु-शिष्य की श्रेष्ठतम परंपरा

 

गुरुपूर्णिमा और गोरक्षपीठ

 

इस मायने गोरक्षपीठ की तीन पीढियां खुद में बेमिसाल

लखनऊ। एक दूसरे का गुरुत्व बढ़ाना गुरु-शिष्य की श्रेष्ठतम परंपरा है। गुरु का गुरुत्व, शिष्य की श्रद्धा में होता है। यह श्रद्धा गुरु के सशरीर रहने पर तो होती ही है, उनके ब्रह्मलीन होने पर भी शिष्य की श्रद्धा जस की तस रहती है। इसी तरह एक योग्य गुरु भी लगातार अपने शिष्य का गुरुत्व बढ़ाने का प्रयास करता है। इस मायने में गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ की तीन पीढियां खुद में बेमिसाल हैं।

 

अपने समय में योगी के लिए अपने गुरुदेव का आदेश ‘वीटो पावर’ होता था

 

गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं। अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के प्रति उनकी श्रद्धा कितनी गहरी थी, इसके साक्षी पीठ से जुड़े लोग हैं। कम शब्दों में कहें तो अपने समय में ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का आदेश उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ के लिए ‘वीटो पॉवर’ जैसा था। आज भी पद के अनुरूप अपनी तमाम व्यस्तताओं में से समय निकालकर वह जब भी गोरखनाथ मंदिर पहुंचते हैं तो सबसे पहले अपने स्मृतिशेष गुरुदेव का ही आशीष लेते हैं। यह सिलसिला उनके मठ में रहने तक जारी रहता है। गुरु शिष्य का यही संबंध योगी जी के गुरुदेव और उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ में भी था।

 

लोगों को शिष्य बनाने की परंपरा नहीं, बावजूद लाखों लोग खुद को मानते हैं

 

हालांकि गोरक्षपीठ की परंपरा, लोगों को शिष्य बनाने की नहीं है। पर, उत्तर भारत की प्रमुख व प्रभावी पीठ और अपने व्यापक सामाजिक सरोकारों के नाते इस पीठ के प्रति लाखों-करोड़ों लोगों की स्वाभाविक सी श्रद्धा है। गोरखपुर या यूं कह लें कि पूर्वांचल की तो यह अध्यक्षीय पीठ है। पीठ का हर निर्णय अमूमन हर किसी को स्वीकार्य होता है। खासकर पर्व और त्योहारों के मामले में।

 

खिचड़ी मेला, गुरुपूर्णिमा और अन्य मौकों पर दिख जाती है ये श्रद्धा

 

समय-समय पर पीठ के प्रति यह श्रद्धा दिखती भी है। मकर संक्रांति से शुरू होकर करीब एक माह तक चलने वाला खिचड़ी मेला इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। इस दौरान नेपाल, बिहार से लगायत देश भर के लाखों श्रद्धालु गुरु गोरखनाथ को, मौसम की परवाह किए बिना अपनी श्रद्धा निवेदित करने आते हैं। कुछ मन्नत पूरी होने पर आते हैं, कुछ नई मन्नत मांगने भी। गुरु पूर्णिमा के दिन भी जो भी पीठाधीश्वर रहता है, उसके प्रति श्रद्धा निवेदित करने बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

 

सितंबर में गुरु शिष्य परंपरा की मिसाल बनती है गोरक्षपीठ

 

इसी तरह हर सितंबर में साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह के दौरान अपने गुरुओं को पीठ याद करती है। उनके कृतित्व, व्यक्तित्व, सामाजिक सरोकारों, देश के ज्वलंत मुद्दों पर अलग-अलग दिन संत और विद्वत समाज के लोग चर्चा करते हैं। यह एक तरीके से गुरुजनों को याद करने के साथ उनके संकल्पों को पूरा करने की भी प्रतिबद्धता होती है।

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