Surya Satta
उत्तर प्रदेश

स्वामी विवेकानंद मेरी नजर में है महापुरुष: संतोष विश्वकर्मा

 

आलेख
जब मै स्वतंत्रता सेनानियों विषय पर सोचता हुँ तो मेरे मन में बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों के नाम आये और हम सभी मानते है की स्वतंत्रता के इस ७५वे पर्व को मनाने का जो शौभाग्य हमें प्राप्त हुआ है। इसमें अनेक महापुरषो ने अपना सर्वस्व त्याग और बलिदान दिया है।जब मै विचार करता हुं की भगत सिंह , राजगुरु सुखदेव का हस्ते- हस्ते फांसी पर झूलना चंद्रशेकर आज़ाद का खुद को अपनी ही बन्दूक से अंतिम गोली मरना लाला लाजपतराय वीर सावरकर खुदीराम बोस रामप्रशाद बिस्मिल अशफ़ाक़ुल्ला खान और ऐसे ही न जाने कितने वीर जिन्होंने हस्ते हस्ते अपने प्राणो बलिदान दिया.

 

तो इन सभी वीरो का प्रेरणा का आधार क्या था कौन था वो जो जिसने इन वीरो के मन में मातृभूमि के प्रति इतना प्रेम भर दिया की उन्होंने अपने प्राणो की भी चिंता नहीं की. तो ऐसी परिस्थिति में एक नाम का स्मरण होता है और वो महापुरुष है स्वामी विवेकानद.
स्वामी विवेकानद जी के विषय में चर्चा बहुत कम होती है परन्तु स्वामी विवेकानंद जी के द्वारा अमेरिका के शिकागो में दिया गया उनका वक्तव्य कौन भूल सकता है.

 

यह सितम्बर का माह है और इस माह के एक दिनांक ११ सितम्बर इस तारीख की चर्चा आते ही हमारे मन बहुत सारे भाव उभरते है उदाहरण के लिए इस मे माह अनेकों आतंकवाद अमेरिका की दो बड़ी इमारतों का ध्वस्त होना राष्ट्रपति जॉर्ज बुश इत्यादि के लिए याद किया जाता है परन्तु सही मायनो में ११ सितम्बर के दिन को याद रखना चाहिए तो केवल एक व्यक्ति के लिए और वो व्यक्ति है “ नरेंद्र नाथ दत्ता” जिन्हे विश्व स्वामी विवेकानंद के नाम से भी जाना जाता है.११ सितम्बर को विश्वपटल पर दिया गया उनका वक्तव्य विश्व के श्रेश्ठतम वक्तव्यों में से एक था.उस वक्तव्य के पश्चात् तत्कालीन समाचार पत्र न्यूयोर्क हेराल्ड ने लिखा की इसमें कोई संदेह नहीं की इस धर्म सांसद में स्वामी विवेकानंद सबसे योग्य व्यक्ति थे. उनको सुनकर हमारे मन में यह भाव आता है की ऐसे विद्वान देश के शासक के द्वारा भारत में धर्ममीशन के दूत भा भेजना उनका उस समय का एक मूर्खतापूर्ण निर्णय रहा होगा”.
ये वही दिन था जब स्वामी विवेकानंद जी ने अपने विचारो से विश्व के बड़े बड़े विद्वानों को बौना साबित कर दिया था और भारत की सनातन संस्कृति का झंडा पूरी दुनिया में फहरा दिया था.

स्वामी विवेकानंद के वे भाषण विश्व के राह हेतु आज भी सार्थक है. पहली बार उन्होंने विश्व संबोधन को दिए जाने पुकार शब्द को बदल डाला था. पहली बार मेरे भाइयो और बहनों के संबोधन को दुनिया ने श्रवण किया था तथा विश्व पहली बार पारिवारिक संबोधन से परचित हुआ था तथा पारिवारिक भाव को समझने पर मजबुर हुआ.

स्वामी जी कि जीवनी और शिकागों का भाषण कोई भूल नही सकता है। बताते चले कि उनकी जीवनी के अनेको घटनाऐं है जिसे आप सभी जानते ही है लेकिन उनका गुरु के प्रति लगाव, देश प्रेम, और स्वदेश लगाव विश्व की थाती है तथा विश्व के आने वाले हर काल खण्ड में सार्थक रहेगा. मै आप सभी का ज्यादा समय ने लेकर हिन्दी दिवस की बधाई देते हुए अपने वाणी को विराम देना चाहुंगा.

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