हिंदी का सम्मान आजादी की दूसरी लड़ाई है: कवि संगम त्रिपाठी
जबलपुर। आजादी के बाद भी हमारी भाषा संस्कृति गुलाम है और जिसकी भाषा संस्कृति गुलाम हो वो शारीरिक रूप से भले ही आजाद हो पर मानसिक रूप से गुलाम ही रहेगा और हम आज भी अंग्रेजियत के गुलाम हैं.
प्राथमिक शिक्षा अंग्रेजी की आज मंहगी हो गई है जिसका मूल कारण हमारी मानसिक गुलामी है. आज हर व्यक्ति अपने बच्चे को अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना चाहता है और अपनी कमाई का अच्छा खासा हिस्सा खर्च कर देता है. जिन बच्चों के माता पिता अंग्रेजी भाषा नहीं जानते हैं उन बच्चों का भविष्य शून्य हो जाता है और उल्टा कोचिंग सेंटर व प्राइवेट ट्यूशन वाले भी शोषित करते हैं.
आज हिन्दी माध्यम में शासकीय स्कूल चल रहे है वो भी मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम संचालित कर शिक्षा को मूलतः समाप्त कर सिर्फ राग अलापने व ढिंढोरा पीटने का कार्य कर रहे है. निजी हिंदी माध्यम स्कूल अपने अस्तित्व को बचाए रखने हेतु संघर्षरत है.
ही गर्व से आजादी के पचास साल को स्वर्ण जयंती के रूप में व पचहत्तर साल को अमृत महोत्सव के रुप में हम मना रहे है पर आज तक अपने देश को एक नाम एक शिक्षा व एक भाषा नहीं दे पाए तो आत्मनिर्भरता की बात कहां तक सही है.
आज हम देशप्रेमी बनकर सच्चे मन से सारे भेदभाव मिटाकर हिंदी के प्रचार-प्रसार का कार्य करें जिससे आजादी की सार्थकता को सिद्ध कर विकास की ऊंचाइयों को छू सकें. इसी उद्देश्य से प्रेरणा हिंदी प्रचारणी सभा का गठन किया गया है जिसमें देश के हर क्षेत्र से हिंदी मनीषी जुड़ कर कार्य कर रहे हैं.