सीतापुर जनपद में मातृ-शिशु स्वास्थ्य में आया गुणात्मक सुधार
सीतापुर। मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य(maternal and child health) को बेहतर बनाने को लेकर सरकार द्वारा चलाई जा रहीं योजनाओं(schemes run by the government) से जहां एक ओर महिलाओं में जागरूकता आई(awareness among women) है वहीं दूसरी ओर धरातल पर उसमें गुणात्मक सुधार भी देखने को मिला है. अब वह न सिर्फ अपने बल्कि गर्भस्थ और नवजात शिशु के स्वास्थ्य के प्रति तेजी से संवेदनशील हो रही हैं. स्वास्थ्य सेवाओं की आमजन तक आसानी से पहुंच(Easy access to health services) का भी इस सफलता में बड़ा योगदान(great contribution to success) है.
एनएफएचएस-5 की हाल ही में आई रिपोर्ट से इस पर लगी मुहर
हाल ही में जारी वर्ष 2020-21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के आंकड़े इस बात का पुख्ता सबूत हैं कि स्वास्थ्य को लेकर लोगों में जागरूकता तेजी से बढ़ रही है. इसके साथ ही आमजन तक अब स्वास्थ्य सेवाएं भी आसानी से पहुंच रहीं हैं.
एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार गर्भावस्था की पहली तिमाही में 66.8 प्रतिशत गर्भवती ने अपने और अपने गर्भस्थ शिशु का स्वास्थ्य परीक्षण कराया, जबकि वर्ष 2015-16 में जारी एनएफएचएस-4 में यह आंकड़ा महज 22.7 प्रतिशत था.
इसी तरह प्रसव पूर्व 35.4 प्रतिशत गर्भवती ने कम से कम चार बार अपनी और अपने होने वाले बच्चे की जांच कराई, जबकि वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा 10.2 प्रतिशत ही था. अपनी और अपने गर्भस्थ शिशु की जांच कराने के दौरान वर्ष 2020-21 में 94.8 प्रतिशत गर्भवती को मां एवं बाल सुरक्षा (एमसीपी) कार्ड मिला, जबकि वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा 77.1 फीसद था.
बीते चार सालों की बात करें तो एनीमिया (खून की कमी) की गंभीरता को भी महिलाओं ने अच्छी तरह से समझा है. एनएफएचएस-5 के अनुसार प्रसव के दौरान एनीमिया को लेकर उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके चलते 18 फीसद महिलाओं ने कम से कम एक सौ दिन और 9.6 प्रतिशत महिलाओं ने कम से कम 180 दिनों तक आयरन फोलिक एसिड का प्रयोग किया, जबकि वर्ष 2015-16 में यह आकड़ा क्रमश: 5.1 और 1.5 प्रतिशत ही था. वर्ष 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार 67.9 प्रतिशत बच्चों को जन्म के 2 दिन के अंदर चिकित्सक, नर्स, एएनएम अथवा किसी प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिला. इसके अलावा घर पर जन्म लेने वाले बच्चों में से कम से कम दो प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें जन्म के 24 घंटों के अंदर स्वास्थ्य केंद्र पर जांच के लिए लाया गया, जबकि वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा शून्य था.
क्या कहती हैं सीएमओ
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. मधु गैरोला का कहना है कि मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के मामले में बीते चार सालों में आया यह बदलाव भविष्य और भावी पीढ़ियों के लिए एक सुखद संदेश कहा जा सकता है. इस उपलब्धि में विभागीय योजनाओं का प्रचार-प्रसार, शासन की स्पष्ट नीति और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों की मेहनत पर काम के प्रति समर्पण की भावना है.