साहित्यकार से पहले स्वतंत्रता सेनानी थे ‘प्रेमचंद’
( दिनेश प्रसाद सिन्हा साउथ अफ्रीका से।)
साहित्य।
मुंशी प्रेमचंद को आज की युवा पीढ़ी हिंदी साहित्यकार के रूप में ज्यादा जानती है और उनके स्वतंत्रता सेनानी के रूप में किए गए कार्यों के बारे में कम ही. अपने समकालीन स्वतंत्रता सेनानियों के साथ उनका बराबर मिलना और देश के ऊपर विचार विमर्श करना आगे की मार्ग को निर्धारण में सहयोग देना यह सब एक स्वतंत्रता सेनानी का ही रूप तो था.
आगे चलकर ब्रितानी सरकार ने उनको परेशान करने का प्रयास शुरू किया तब वे हिन्दी उर्दू भाषा में अपनी कलम का जादू देश के लिए उठाया और ‘ कलम के जादूगर’ विशेषण से अंलकृत हो गये.
उनकी साहित्य देश में ही नहीं विदेशों में भी आदर प्राप्त हैं। प्रेमचंद और उनकी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय महत्व है। आज उन पर और उनके साहित्य पर विश्व के उस विशाल जन समूह को गर्व है जो साम्राज्यवाद, पूँजीवाद और सामंतवाद के साथ संघर्ष में जुटा हुआ है.
31 जुलाई 1880 को वाराणसी में हुआ था मुंशी प्रेमचंद का जन्म
मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के समीप एक ‘लम्ही’ नामक गांव में 31 जुलाई 1880 में हुआ था. उनके पिता एक डाक खाने में नौकरी किया करते थे, जिनका नाम अजायब राय था और उनकी मां का नाम आनंदी देवी था. मुंशी प्रेमचंद्र का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, जिन्हे बाद में मुंशी प्रेमचंद और नवाब राय के नाम से जाना जाने लगा. जब मुंशी प्रेमचंद 7 वर्ष के थे तब उनकी मां का देहांत हो गया. इनके 14 वर्ष की अवस्था में ही इनके पिता के भी देहांत हो जाने पर इनका प्रारंभिक जीवन अत्यंत कष्ट से बीता.
पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार उनका विवाह 15 वर्ष की उम्र में हो गया जो सफल नहीं हो सका. मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्य एवं रचनाओं के माध्यम से समाज को परिवर्तित करने के कई महत्वपूर्ण कार्य किए. वे आर्य समाज से काफी प्रभावित थे. इसके अतिरिक्त उन्होंने धार्मिक एवं सामाजिक आंदोलन में भी साहित्यिक रचनाओं के द्वारा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया एवं 1906 में अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुसार एक विधवा स्त्री शिवरानी देवी के साथ विवाह किया. उनकी तीन संताने हुई जिनका नाम श्रीपत राय, अमृत राय एवं कमला देवी श्रीवास्तव था. मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को लंबी बिमारी तथा लेखक संघ के पद पर रहते हुए लेखको कि लड़ाई लड़ते लडते हुई.
गांव देहात के परिवेश को आगे रखते हुए उस समय के तत्कालीन सभी बिंदुओं और विषय पर उन्होंने प्रभावशाली ढंग से लेखन का कार्य किया.’ बडे घर की बेटी’ के रचना में उन्होंने जमींदारी प्रथा के संघर्ष और कमियों की ओर चित्रण किया.
दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर उपन्यास ‘निर्मला’ की रचना की वहीनारी जाति की परवशता, निस्सहाय अवस्था, आर्थिक एवं शैक्षिक परतंत्रता से ‘सेवासदन’ उपन्यास प्रकाशित हुई.
‘ गबन’ नाम के अनरुप सटीक रचना रही वहीं ‘ नमक के दरोगा’ कहानी से भ्रष्टाचार कर चोट तो फिर ‘पंच परमेश्वर’ में पद के साथ न्याय का पाठ तथा ’दो बैलों की जोड़ी’ पर मित्रता पर प्रकाश डाला हैं। ‘कर्मभूमि’ पारिवारीक दायित्वों से जुझते माहौल में भी कर्म पथ पर डटे रहना का कर्म बोध हैं.जाँत पात, कुरीतियों, अमीर गरीब नारी , पद और कर्तब्य, शिक्षा, वर्ग सर्घष तथा शायद ही अन्य कोई विषय हो जीस पर प्रेम चंद ने कलम न चलाई हो.
प्रेमचंद के मुंशी प्रेमचंद बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. हुआ यूं कि मशहूर विद्वान और राजनेता कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से प्रेमचंद के साथ मिलकर हिंदी में एक पत्रिका निकाली. नाम रखा गया-’हंस’ यह 1930 की बात है. पत्रिका का संपादन केएम मुंशी और प्रेमचंद दोनों मिलकर किया करते थे। तब तक केएम मुंशी देश की बड़ी हस्ती बन चुके थे. वे कई विषयों के जानकार होने के साथ मशहूर वकील भी थे. उन्होंने गुजराती के साथ हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के लिए भी काफी लेखन किया.
मुंशी जी उस समय कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो चुके थे. वे उम्र में भी प्रेमचंद से करीब सात साल बड़े थे. बताया जाता है कि ऐसे में केएम मुंशी की वरिष्ठता का ख्याल करते हुए तय किया गया कि पत्रिका में उनका नाम प्रेमचंद से पहले लिखा जाएगा. ‘हंस’ के कवर पृष्ठ पर संपादक के रूप में ‘मुंशी-प्रेमचंद’ का नाम जाने लगा. यह पत्रिका अंग्रेजों के खिलाफ बुद्धिजीवियों का हथियार थी. इसका मूल उद्देश्य देश की विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर गहन चिंतन-मनन करना तय किया गया ताकि देश के आम जनमानस को अंग्रेजी राज के विरुद्ध जाग्रत किया जा सके जाहिर है कि इसमें अंग्रेजी सरकार के गलत कदमों की खुलकर आलोचना होती थी. उनके जन्मदिन पर शत् शत् नमन करता हूँ.