Surya Satta
उत्तर प्रदेशऐतिहासिक व पौराणिकशिक्षा

अवधी भाषा को पहचान दिलाने वाले साहित्यिक कवि पढ़ीस अपनी ही जन्मभूमि में हुए गुमनाम

मदन पाल सिंह अर्कवंशी 
लखनऊ। उत्तर प्रदेश ही नहीं देश दुनिया में अवधी भाषा(Awadhi bhasha) को पहचान दिलाने वाले बलभद्र प्रसाद दीक्षित (Balabhadra Prasad Dixit) पढ़ीस जी(padhis ji) अपनी ही जन्मभूमि(janmabhomi) व ग्रह जनपद में गुमनाम हो चुके है. ऐसे महान अवधी भाषा के साहित्यिक कवि(literary poet) व्यंग्यकार को नई पीढ़ी भूल चुकी है. पढ़ीस जी ने अंग्रेजी हुकूमत(British rule) के विरुद्ध(viruddh) अपनी रचनाओं (compositions) के माध्यम से देश की आजादी के लिए जनमानस में क्रांति लाने का काम किया. पढ़ीस जी की रचनाओं को लखनऊ विश्वविद्यालय सहित अन्य विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है. पढ़ीस जी को हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी भाषाओं का ज्ञान था.

अंग्रेजी हुकूमत ने पढ़ीस द्वारा लिखी गई पुस्तक चकल्लस पर लगाया था प्रतिबंध

सीतापुर: बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस जी अवधी भाषा के जनक कहे जाते हैं, पढ़ीस जी द्वारा लिखी गई रचनाओं में यथार्थ दिखाई पढ़ता. क्योंकि उन्होंने वही लिखा जो उन्हों समाज में होता हुआ दिखता. बलभद्र प्रसाद दीक्षित जी द्वारा लिखी गई चकल्लस पुस्तक में कई कविताएं ऐसी भी है जो अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देते हुए देश की आजादी के लिए जनमानस में क्रांति लाने का काम किया. चकल्लस पुस्तक का प्रकाशन सन 1933 में एक ही बार हो सका, उसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने पढ़ीस द्वारा लिखी गई पुस्तक चकल्लस पर प्रतिबंध लगा दिया और चकल्लस पुस्तक की प्रतियों का प्रकाशन दोबारा नहीं होने दिया. उसके बावजूद भी वाह समाज में देश की आजादी के प्रति जनमानस में क्रांति लाने में कुछ हद तक सफल भी हुए. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ जो उस समय आगरा अवध प्रांत में आता था उस दौरान दूरसंचार का कोई साधन नहीं था जब लखनऊ में रेडियो संचार की शुरुआत हुई. तो बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस जी को आल इंडिया रेडियो में नैकरी मिल गई. पढ़ीस जी ने रेडियो पर देहाती भाई नाम के कार्यक्रम की सुरूवात की गई. रेडियो के माध्यम(आकाशवाणी) से उन्होंने अपनी साहित्यिक रचनओ के जरिये जनमानस से जुड़े रहे. रेडियो से अपनी रचनाओं का निरंतर प्रशारण करते रहे. अवधी भाषा में लिखी रचनाओं के जरिये देश को आजाद कराने की भावनाओं को जनमानस तक पहुचाते रहे. वही समाज में फैली कुरितियों व जाति पाति छुवा छूत का विरोध भी अपनी रचनाओं के माध्यम से किया. जिससे समाज में काफी बदलाव भी देखने को मिला.
पढ़ीस जी की कई रचनाओं को लखनऊ विश्वविद्यालय में बी.ए व एम.ए में हिन्दी साहित्य में पढ़ाई जाती है. लखनऊ विश्वविद्यालय के अतिरिक्त उनकी रचनाओं को अन्य विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है.

पढ़ीस ने 1941 में रेडियो की नौकरी छोड़ स्वराज आन्दोलन मे हुऐ थे शामिल

1941 में रेडियो(आकाशवाणी) की सरकारी नौकरी छोडकर स्वराज आन्दोलन मे शामिल हो गये. इस के साथ ही जाति पांति छुवा छूत को खत्म करने के उद्देश्य से सवर्ण दलित सहित सभी जातियों के बच्चों एक साथ शिक्षा देने के उद्देश्य से अपने गांव में पाठशाला संचालित की और बच्चों को बढ़ाना सुरू किया. पढ़ीस जी मानवता के सच्चे पक्षधर थे सामाजिक सुधार की भावना बलभद्र प्रसाद दीक्षित के मन में कूट कूट कर भरी हुई थी.

पढ़ीस की जन्मभूमि में नही है कोई उनकी स्मृति अवशेष

बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस के जन्मभूमि अम्बरपुर गांव में उनकी कोई स्मृति अवशेष नही है. जहां पर उनका घर था वह एक टीले में तबदील हो चुका है. उनके पौत्र संतोष दीक्षित, अनिल दीक्षित, राकेश दीक्षित, कनुभद्र दीक्षित सीतापुर जनपद के सिधौली कस्बे में रहते है वही युक्तभद्र के पुत्र श्रीभद्र दीक्षित इलाहाबाद (प्रयागराज) प्रीतमनगर कालोनी थाना धूमल नगर में रहते है. गांव में पढ़ीस के नाम से एक एडेड विद्यालय तो संचालित है. लेकिन उस विद्यालय के बाहर विद्यालय का नाम नही दर्शाया गया है. जिसे नई पीढ़ी बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस जी को नही जानती है. गांव के बुजुर्ग लोगों व उनके परिजनों की मांग है कि गांव में सरकार पढ़ीस जी के नाम से पुस्तकालय व उनका स्मारक बनाने का काम करे.
पढ़ीस जी का जीवन परिचय
बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस का जन्म 25 सितम्बर 1898 को सीतापुर जनपद के तहसील सिधौली क्षेत्र के अम्बरपुर गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था. उस समय सीतापुर जनपद संयुक्त प्रांत आगरा व अवध के अन्तर्गत आता था. जो आजादी के बाद उत्तर प्रदेश प्रांत बना. पढ़ीस जी के पिता का नाम कृष्ण कुमार दीक्षित व माता का नाम यशोदा था. उनके भाई दीनबंधु, सुखदेव प्रसाद, कामता प्रसाद, बहन बियना थी.
बलभद्र प्रसाद दीक्षित बहन व भाईयों में सबसे छोटे थे. बलभद्र प्रसाद शिशु ही थे कि उसी दौरान उनके पिता का देहांत हो गया. जिसके बाद उनके भड़े भाई दीनबंधु पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई. 12 वर्ष की आयु में दीनबंधु ने कसमंडा स्टेट के राजा सूर्यबक्श सिंह के दरबार में खिदमतगार के तौर पर नौकरी कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगे. कुछ समय बाद राजा की पुत्री का विवाह विजयनगरम से हुआ. उस दौरान राज कुमारी दीनबंधु को अपने साथ विजयनगरम लेजाना चाहती थी.
राज कुमारी के साथ जाने से पहले दीनबंधु ने अपने सबसे छोटे भाई बलभद्र प्रसाद दीक्षित को राजदरबार में खिदमत के लिए नियुक्त करा दिया. जहां बलभद्र प्रसाद की पढ़ाई कसमंडा के राजकुमार दिवाकर प्रताप सिंह के साथ हुई. पढ़ाई लिखाई के बाद बलभद्र प्रसाद दीक्षित राजा कसमंडा के निजी सचिव के तौर पर काम किया. इस बीच वह सहित्यिक कविताएं, व्यंग्य, कहानी, गजले लिखने लगे थे. कुछ समय बाद पढ़ीस जी ने चकल्लस नाम की एक पांडुलिप तौयर की जिसका प्रकाशन कसमंडा के राजा सूर्यबक्श सिंह द्वारा लखनऊ के दुलारे लाल भार्गव पुस्तक भंडार के यहां चकल्लस नाम के रचना संग्रह का प्रकाशन सन 1933 में कराया गया था.
पढ़ीस जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लिखी थी कई रचनाएं
चकल्लस नाम की कविता संग्रह पुस्तक में पढ़ीस जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई साहित्यिक कविताएं लिखी थी. इन रचनाओं ने जनमानस में अंग्रेजो के विरुद्ध क्रांति लाने का काम रही थी. जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने चकल्लस पुस्तक पर बैन लगा दिया और इस पुस्तक की प्रतियां को दोबारा छापने पर रोक लगा दी. इस बीच लखनऊ में आल इंडिया रेडियो की स्थापना हुई तो बलभद्र प्रसाद दीक्षित को रेडियो में नौकरी मिल गई. बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस जी ने रेडियो पर देहाती भाई नाम के कार्यक्रम में अपनी  कविताओं को जनमानस तक पहुचाने का काम करने लगे. 1941 में आकाशवाणी की सरकारी नौकरी छोडकर स्वराज आन्दोलन मे शामिल हो गये.
 इस के साथ ही जाति पांति छुवा छूत को खत्म करने के उद्देश्य से सवर्ण दलित के बच्चों को एक साथ शिक्षा देने के उद्देश्य से अपने गांव अम्बरपुर में पाठशाला संचालित की और बच्चों को पढ़ाना सुरू किया. पैर में हल की फाल लग जाने के कारण लखनऊ स्थित बलरामपुर अस्पताल में उपचार के दौरान 14 जुलाई सन 1942 में उनका देहांत हो गया. पढ़ीस जी के चार बेटे थे जिन में से युक्तभद्र दीक्षित व लवकुश दीक्षित एक बड़े कवि के तौर पर जाने गये. युक्तभद्र दीक्षित ने कई कविताएं लिखी. वह लम्बे समय तक रेडियो स्टेशन(आकाशवाणी) के डारेक्टर रहे. वही लवकुश दीक्षित ने बहुत सी कविताएं, व्यंग्य, गीतो की रचना की. उन्होंने 40 वर्षो तक आकाशवाणी व दूरदर्शन पर अपनी रचनाओं का पाठ किया.
हिन्दी संस्थान लखनऊ ने पढ़ीस ग्रंथावली का कराया था प्रकाशन
पढ़ीस ग्रंथावली का प्रकाशन हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा कराया गया. इस पुस्तक में पढ़ीस द्वारा लिखी गई कविताएं जो किसी अन्य पुस्तक में प्रकाशित हुए व अप्रकाशित सम्पूर्ण रचनाओं का प्रकाशन कराया गया. इस ग्रंथावली का सम्पादक डा. रामबिलास शर्मा व पढ़ीस जी के पुत्र युक्तिभद्र दीक्षित द्वारा किया गया. रचनाओं का संकलन पढ़ीस के पौत्र श्रीभद्र दीक्षित द्वारा किया गया. इस ग्रंथावली में पढ़ीस जी के जीवन परिचय के साथ ही उनकी रचनाओं व किस तरह से बलभद्र प्रसाद दीक्षित का समय बीता और उनका समाज व देश के लिए क्या योगदान रहा. इसका इस ग्रंथावली में उल्लेख किया गया. इस के अलावा दर्जनों साहित्यकारों ने पढ़ीस जी पर पुस्तकें लिखी है.

Leave a Reply

You cannot copy content of this page