नैमिषारण्य चक्र तीर्थ, मां ललिता ने ही चक्र की नेमि को रोककर पृथ्वी को जल प्रलय से था बचाया
मदन पाल सिंह अर्कवंशी
सीतापुर। सीतापुर(sitapur) जिले में स्थित मां ललिता देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक(Maa Lalita Devi Temple One of the 51 Shaktipeeths) है. मां ललिता देवी को आदि शक्ति स्वरूपा(Adi Shakti Swarupa to Mother Lalita Devi) भी कहा जाता है. सृष्टि की उत्पत्ति के समय सर्व प्रथम आदि शक्ति के रूप में मां ललिता का प्राकट्य हुआ(At the time of the creation of the universe, Mother Lalita first appeared in the form of Adi Shakti). जिन्होंने ब्रम्हा, विष्णु, शंकर की उतपत्ति की. एक यह भी मान्यता है कि यहां देवी सती का हृदय भाग गिरा था.
मां ललिता देवी को त्रिपुर सुंदरी, राज राजेश्वरी के नाम से भी जाता जाना
88 हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य में स्थित जगत जननी मां ललिता देवी मंदिर में प्रतिदिन देश भर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन पूजन के लिए पहुचते है और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के हिस्से, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे थे. वहां-वहां शक्तिपीठ बन गए थे. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है. एक यह भी मान्यता है यहां सती का हृदय भाग गिरा था. मां ललिता देवी को त्रिपुर सुंदरी, राज राजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है. नैमिषारण्य स्थित इस पावन शक्तिपीठ के दर्शन के लिए वैसे तो पूरे वर्ष भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां का महात्म्य और भी बढ़ जाता है.

पूरे वर्ष नैमिषारण्य में दर्शन के लिए पहुचाते है श्रद्धालु
नैमिषारण्य को सतयुग का तीर्थ माना गया है. यहीं पर हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथों, चार वेद, छह शास्त्र और 18 पुराणों की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी. यही पर 23 हजार वर्षों तक राजा मनु और उनकी पत्नी सतरूपा ने घोर तप किया था, इस क्षेत्र को अष्ठम बैकुंठ भी कहा जाता है. मां ललिता को आदि शक्ति स्वरूपा भी कहा जाता है. सृष्टि की उत्पत्ति के समय मां ललिता आदि शक्ति के रूप में यही पर प्राकट्य हुआ. आदि शक्ति स्वरूपा मां ललिता ने बम्हा, विष्णु, शंकर की रचना की. महर्षि कश्यप की 13 पत्नियों से देव दानव, मनुष्य सहित जीव जन्तुओं का विस्तार हुआ.
विश्व का सबसे प्राचीन है नैमिषारण्य का चक्र तीर्थ
विश्व का सबसे प्रमुख और प्राचीन धार्मिक स्थल माता ललिता देवी मंदिर व चक्र तीर्थ है. इस मंदिर की शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है. इस मंदिर के बारे में पुराणों में वर्णित कथानक के अनुसार एक बार सत्युग काल में ऋषियों ने दानवों के आतंक से पीड़ित होकर ब्रम्हा जी से अपनी साधना पूरी करने के लिए किसी सुरक्षित स्थान की अपेक्षा की थी. ऋषियों के आग्रह पर ब्रम्हा जी ने अपना ब्रम्ह मनोमय चक्र छोड़कर उनसे कहा कि जिस अरण्य क्षेत्र में यह चक्र गिरेगा वही क्षेत्र आपकी साधना तप के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा.

मान्यता है कि जब यह चक्र नैमिषारण्य में गिरकर धरती का भेदन करने लगा तो साढ़े छह पाताल भेदन के बाद पृथ्वी जलमग्न होने लगी, जिस पर सभी ऋषि फिर ब्रम्हा जी के पास गए और उनसे इस प्रलय को रोकने का अनुरोध किया. इसके बाद ब्रम्हा जी ने सभी को शिव जी के पास भेज दिया. शिव जी ने उन्हें बताया कि नैमिषारण्य में ललिता नाम की देवी तपस्या कर रही है. वही इस चक्र की नेमि को रोक सकती है. इसके बाद सभी ने आदि शक्ति स्वरूपा ललिता की स्तुति की. जिसके बाद मां ललिता ने ही चक्र की नेमि को रोककर पृथ्वी को प्रलय से बचाया.
चक्र तीर्थ में आचमन, मार्जन, स्नान करने मात्र से मनुष्य के किए गये सभी पाप हो जाते नष्ट
देवी भागवत पुराण के अनुसार वाराणसी में मां ललिता विशालाक्षी के रूप में विद्यमान है नैमिषारण्य में शिव को अपने हृदय में धारण किए हुए है. आदि शक्ति स्वरूपा मां ललिता देवी के दर्शन मात्र से जन्मजन्मांतर के किए गये पाप क्षय हो जाते है रामचरितमानस में लिखा है तीर्थवर नैमिष विख्याता अति पुनीत साधक सिद्ध दाता. नैमिषारण्य में स्थित चक्र तीर्थ का आचमन, मार्जन व स्नान करने मात्र से किए गये सभी पाप नष्ट हो जाते है. यदि कोई मानव कभी दान, धर्म, तप , यज्ञ ना किया हो नैमिषारण्य में आने से उसको भी ब्रम्हलोग की प्राप्ति होती है.

नैमिषारण्य के तीर्थ व मां ललिता देवी मंदिर की मान्यता के बारे में भास्कर शास्त्री, आचार्य शानू शास्त्री ने विस्तार से जानकारी दी और तीर्थ व मंदिर के प्राचीन और पौराणिक महत्व पर प्रकाश डाला.
नैमिषारण्य क्षेत्र में हर वर्ष होने वाली 84 कोस की परिक्रमा का 9 वें पडाव नैमिषारण्य में साधु संत व श्रद्धालु 11 मार्च 2022 दिन शुक्रवार को नैमिषारण्य पहुंचे, श्रद्धालुओं ने यहां रात्रि विश्राम किया. और शनिवार सुबह चक्र तीर्थ व गोमती नदी में स्नान के पश्चात मां ललित देवी सहित नैमिषारण्य में अन्य प्राचीन मंदिरों में दर्शन के पश्चात 12 मार्च शनिवार को 10 वें पडवा कोल्हुवा बरेठी के लिए परिक्रमार्थी कूच कर गये.