Surya Satta
उत्तर प्रदेशऐतिहासिक व पौराणिकधार्मिकसीतापुर

जाने कब और कैसे सुरू हुई रक्षाबंधन मनाने की परम्परा  

मदन पाल सिंह अर्कवंशी 
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ(lucknow) से 50 किलोमीटर दूर सीतापुर(sitapur) में स्थित एक ऐसा मंदिर(Temple) जहां पर भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन देव(Vamana Deva, the fifth incarnation of Lord Vishnu) की स्वयंभू मूर्ति(self-styled god) देखी जा सकती है. पुराणों के अनुसार(according to the Puranas) इसी स्थान पर भगवान विष्णु(Lord Vishnu) ने त्रेतायुग में राजा बलि का घमंड तोड़ने के लिए देवमाता अदिति (Devmata Aditi) केे गर्भ से वामन रूप में जन्म लिया था. यहां मंदिर में स्थित दो छोटी मूर्तियां स्वयंभू(two small sculptures) बताई जाती हैं. इस स्थान पर हजारों वर्ष पुराना एक पंचवटी वृक्ष(A thousand years old Panchavati tree) मौजूद है.

 

कई ग्रंथों में वामन विहार का उल्लेख

 वामन पुराण, विष्णु पुरण, स्कन्द पुराण, नरसिंह पुराण, देवी भागवती पुरण,श्रीमद्भागवत महापुराण, आदि पुराणों में इस स्थान का उल्लेख है. पुराणों में नैमिषारण्य क्षेत्र के आदि गंगा गोमती नदी से तीन कोस उत्तर की ओर वामन विहारी स्थल होने का उल्लेख है. जो अब अपभ्रंश होकर बौनाभारी हो गया है. इस सिद्धपीठ पर प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में लोग दूर दूर से पूजा अर्चना के लिए पहुचते है. इस स्थान पर साल में दो बार वार्षिक आयोजन होते है. इन आयोजनों पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुचते है. कलिकाल में अवतरित भगवान बुद्ध के भी इस गांव में आने की किंवदंतियां है.

मन्दिर में आने वाले श्रद्धालुओं की हर मुराद होती है पूरी

यह स्थान जिला सीतापुर के विकास खण्ड सिधौली क्षेत्र के बौनाभारी गांव में मौजूद है. त्रेतायुग से ही भगवान वामन विहारी के नाम से जाना जा रहा है बाद में इस का अपभ्रंश बौनाभारी हो गया. वामन धाम मंदिर में अति प्राचीन एक पीपल का वृक्ष है जिस में बरगद,पाकर,नीम व एक कंटीले पेड़ की छांव है. जिसे लोग पंचवटी वृक्ष भी कहते है. लोगों का कहना है कि विषेश अनुस्ठान, पूजन के दौरान यहां श्रध्दालुओं को नाग देवता के दर्शन होते है. इस स्थान पर प्रतिदिन दूर दराज से लोग पूजा अर्चना के लिए पहुचते है. इस मन्दिर में आने वाले श्रद्धालुओं की हर मांगी गई मुराद पूरी होती है.

भगवान विष्णु ने देवमाता अदिति के गर्भ से लिया था वामन रूप में जन्म

त्रेतायुग में इसी स्थान पर भगवान विष्णु देवमाता अदिति के गर्भ से वामन रूप में जन्म लिया था. इसी स्थान पर भगवान शंकर, भगवान ब्रम्हा, देवराज इन्द्र सहित समस्त देवताओं ने वामन भगवान का यज्ञोपवीत कराया था. जिस के बाद भगवान विष्णु वामन रूप में प्रहलाद के पौत्र महादानी राजा बलि के द्वार ( वर्तमान समय में सोनिकपुर(सोणितपुर) जो सीतापुर सीमा से 6 किलोमीटर दूरी पर हरदोई जनपद में स्थान है) पहुचे. जहां राजा बलि अश्वमेध यज्ञ की पूर्णाहुति देने जा रहे थे.
वामन रूप में पहुचे भगवा विष्णु ने आवाज लगाई भिच्छामिदे: जब राजा बल ने आवाज सुनी तो वह यज्ञ स्थल से उठने लगे तो दौत्य गुरू सुक्राचार्य ने राजा बलि को रोक दिया. पुनः भिच्छामिदे: की आवाज सुनकर बलि यज्ञ स्थल से बाहर आ गये और वामन रूप में एक छोटे से बालक को देखा तो राजा बलि ने पूछा हे वामन देव आप को क्या चाहिए, तो वामन रूप में मौजूद भगवान विष्णु ने बलि से कहा हे राजन मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए.
सच्चाई जानने के बाद भी राजा बलि ने तीन पग भूमि का किया था दान 
राजा बलि ने उनसे और कुछ मागने के लिए कहा लेकिन वह मात्र तीन पग भूमि के दाम लेने पर अडिग रहे. तब राजा बलि ने तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया. इस दौरान शुक्राचार्य ने पुन: राजा बलि को भूमि दान देने से रोकते हुए कहा राजन आप जिन्हें वामन रूप में बालक समझ रहे है वह स्वयं छलिया विष्णु है जो तुम्हे छलने आये हैं तो राजा बलि ने कहा आज तक मेरे द्वार से कोई भी खाली हाथ नही गया. आज तो स्वयं भगवान विष्णु हमारे द्वार पर पधारे है. राजा बलि ने हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का वचन दिया.
दो पग में ही वामन भगवान ने पृथ्वी,पाताल, आकाशा मंडल,नक्षत्र मडल लिया था माप 
तब भगवान विष्णु वामन रूप से विशाल रूप धारण कर लिया और पहले पग में धरती और पाताल को नाप लिया और दूसरे पग में समस्त नक्षत्र मंडल और आकाश मंडल को नाप लिया. भगवान विष्णु ने राजा बलि से कहा हे राजन मैने तो दो पग में पृथ्वी,पाताल, आकाशा,नक्षत्र सब कुछ नाप लिया है.
अब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान शेष नही है यदि तुम चाहो तो तीसरा पग मैं छमा कर सकता हूं तब बलि ने कहा हे प्रभु ऐसा मत कहिए बलि ने सदैव हाथ खोल कर और नेत्र बंद कर दान दिया है. इस लिए आप को तीसरा पग उठाना ही पडेगा. इस पर भगवान विष्णु ने पूछा तो अब वह स्थान कौन है जहां मैं अपना तीसरा पग रखूं. तो राजा बलि ने कहा हे प्रभु एक ही स्थान शेष है जिस पर अभी भी मेरा अधिकार शेष है वह मेरा शरीर है. प्रभु तीसरा पग मेरे शीष पर रखिए.
राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने महल का बना था द्वारपाल
संसार यह जान ले कि बलि दान देना ही नही वचन निभाना भी जानता है तब भगवान विष्णु ने तीसरा पग बलि के शीष पर रखा.  बलि से भगवान विष्णु प्रसंन होकर प्रथ्वी के केन्द्र भाग (जिसे पाताल(रसातल) कहा जाता है दे दिया.
वामन भगवान ने उनके पीतामा प्रहलाद की तरह सुख शंति से राज्य करने को कहा. भगवान विष्णु ने राजा बलि की उदारता को देखते हुए वर मांगने को कहा. राजा बलि ने कहा यदि आप मुझे वर देना चाहते है तो, आप मेरे महल के द्वारपाल बने. मेरे महल में 52 द्वार है मैं जिस भी द्वार से बाहर निकलू तो आप के दर्शन हो और भगवान विष्णु ने वैसा ही किया. काफी समय बाद भी जब भगवान विष्णु सीर सागर नही पहुचे तो मां लक्ष्मी काफी बिचलित हो गई.

रक्षासूत्र के बदौलत मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु राजा बलि से कराया था मुक्त

देवऋषि नारद ने मां लक्ष्मी से बताया कि भगवान विष्णु राजा बलि के द्वारपाल बने हुए है. आप राजा बलि के महल जा कर उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बधो, मां लक्ष्मी ने वैसा ही किया. मां लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा. बलि ने मां लक्ष्मी से भेट स्वरूप कुछ भी मालगने के लिए कहा तब मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मांग लिया. रक्षासूत्र के बदौलत मां लक्ष्मी जी को भगवान विष्णु उन्हें मिल गये. तभी से हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन मनाया जाता है.
कहाँ था राजा बलि का महल
हरदोई जनपद के सोनिकपुर गांव के पश्चिम जो एक विशाल टीला है. यह सैकडों एकड में फैला है इस टीले के अधिकांश भाग पर कई गांव बस गये है. जो त्रेतायुग में राजा बलि का महल था, द्वापरयुग में राजा बलि के बडे पुत्र वाणासुर के महल के नाम से बिख्याता हुआ जो वर्तमान समय में भी लोग वाणासुर की राजधानी सोनिकपुर के नाम से जानते है इस टीले पर एक तरह की तीन शिवलिंग बिद्यावान है यह मन्दिर वाणेेश्वर महादेव के नाम से बिख्यात है.

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