Surya Satta
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कान्हा की जीवन झांकी, देवकी अधीर कहीं हो न जाए भोर, जल्दी चल दिए गोकुल की ओर

 

( दिनेश प्रसाद सिन्हा, साउथ अफ्रीका)

साहित्य। 

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की बात,
रोहिणी नक्षत्र और वृषभ के ।
शुभ लग्न,अष्टमी तिथि कि स्थिति ,
बद्री भरी वो थी एक काली रात।।

देवकी बंधी जंजीर मे कैद में थे वासुदेव,
कंश की क्रुरता बन बैठा जैसे हो नागदेव।
सन्नाटा का जोर था,आगमन को भोर था,
जीवन संग मृत्यु में ठनी संघर्ष की होड़ थी

तभी कान्हा का जन्म हुआ,
चहुँ ओर अद्भुत प्रकाश हुआ।
जन्म दाता बंधन मुक्त हो गए,
चम्तकार हुआ द्वारपाल सो गए।।

जगत पालक कान्हा का जन्म हुआ,
हर्षित माँ बाप का तन मन हुआ।
देवलोक से पुष्प की वर्षा ही वर्षा,
शंखनाद सुन कंश जीवन को तड़सा।।

टोकरी में मधू सुदन को डाल,
वाशुदेव माथे चढ चले गोपाल ‌‌।
देवकी अधीर कहीं हो न जाए भोर,
जल्दी चल दिए गोकुल की ओर।।

रास्ते में यमुना की प्रंचड कलकल,
मिलने को प्रभु से आतुर पलपल।
स्पर्श कर पांव नंद लाल का,
तब जा कर यमुना हुई अविकल।।

गोकुल गांव पहुंच बाल गोपाल,
मैया यशोदानन्दन के लाल भये।
दिल का टुकड़ा अपना देकर,
उनकी सुता योगमाया ले गये।।

थोड़ी देर बाद द्वारपाल जग गए,
संदेशा कंस को दिया सबने पहुंचाएँ।
छीन कर यशोदा सुता देवकी से,
कंश मारने को शीघ्रता दौड़ गए।।

कंस ने जो पटका देवमाया को,
देवमाया क्रुद्ध हो अट्हास कर गई।
कंस तेरा निकट अंत, मरेगा कह गई,
देवलोक से भी आकाशवाणी हो गई।।

नन्द के घर ढोल व मंजीरा बजे,
नित्य नये वस्त्र में यशोदा लाल सजे।
गोद में ले सारा गांव हुआ निहाल,
यशोदा का मातृत्व पा धन्य हुआ लला।।

माँ यशोदा कन्हा के वात्सल्य में डुबी,
सीधा सादा भोला भाला वो मनमोहन।
गोद में खेले,पालकी में झपकी लेले,
सुरक्षा को,यशोदा न छोड़े अकेले।।

कंस बहुत जत्न करे,मारने गोपाल को,
फिर दिया संदेशा पूतना विकराल को।
कराए स्तनपान विषदुग्ध मातृत्व घोल के,
स्तनपान से ली जान पुतना बेईमान की।।

असुर बहुत आते रहे,पर तंग करते रहे,
नन्द ने खुब विचारा,गोकुल में न अब रहे।
छोड़ गोकुल वृन्दावन को प्रस्थान किया,
जहाँ वत्सासुर के पाप का विनाश किया।

फिर कृष्ण की बाल लीला,
दाऊ को सताना ,संग खेला।
माँ को दौड़ाना, खुद रूठ जाना,
मटकी तोड़ माखन का खाना।।

गायों बछड़ो को ले वन जाना,
वही बंसी को बजाना सीखा।
ढेले से मार मार मटकी फोड़,
गोपीयों को रिझाना सीखा।।।

बाल ग्वाल संग बचपन का मेल,
सब का ध्यान रख करते खेल।
दोस्तों संग सुखदुख बांटते ,
चखा स्वाद माटी का अनमोल।‌।

माटी का पा ध्यान यशोदा बेचैन,
कान पकड़ मुंह झट से खुलवाया ।
वंशीधर ने की लीला,कर बंद नैन,
मुंहअंदर तीनोलोक,ब्रम्हांड दिखाया।।

केशव की शरारतों से मैया हो तंग,
ओखल संग अनंत को दिया बाँध।
दो देवदूत बृक्षों का तब हुआ उद्धार,
देख तेरी ऐसी लीला मैया भई दंग।।

कालिया के विष से यमुना जल अशुद्ध,
सर्प के विशालरूप, यह संकट विकट।
कालिया के फन पर नृत्य वंशी की तान,
नीर हुआ शुद्ध,सर्व जगत को है ज्ञान।।.

इन्द्र जब रुष्ठ हुए, वृष्टि का दौर हुआ,
गोवर्धन पर्वत धरा अंगुली पर।
मानों पर्वत नही खेल का गेन्द हुआ,
तब घमंड इंद्र का चूर चूर हुआ।।

गोपियों के संग कान्हा का मेल ,
वस्त्र छीपाने को,छीपते कदम वेल में।
रचाते निश्छल पावन रासलीला ,
मुख की है शोभा सुँदर,वस्त्र है पीला।

एक राधा एक कृष्ण,एक दुजे के पुरक,
प्रेम हो निश्चल पवित्र,मार्ग में हमेशा सार्थक।

वंशी की तान पर राधा का इंतजार प्रेरक,
देता राह आत्म मंथन से विष का नाशक।।

अक्रूर के साथ मथुरा,जाने को तैयार,
जल अंदर देखा है ईश्वर के अवतार ।
कंस के धोबी से लिया वस्त्र,रचा श्रृंगार,
कंस दरबार में कुवलीयापीड़ का उद्धार।।

कंस समझ आन पड़ी है विपत्ता भारी ,
कृष्ण दिए संकेत अब है कंश की बारी।
चाणूर,मुष्टिक टेर हुए,कंस का वध किया,
उग्रसेन को छुड़ा राज्य राजतिलक दिया।।

जन्मदाता से कारागार में मिले,
बच्चो से मिल चेहरे माँ बाप के खिले।
पहुँच सांदीपनि आश्रम,विद्या लिए,
चौंसठ कलाओं में निपुण तब हुए।।

बृजभूमि संयम संवाद करने को उद्धव,
गोपियों के मनो भाव में क्यों खो गए?
संवाद गोपिओं से करके भी जानबुझ,
कन्हैया न जाने क्यो पानी पानी हो गए?

जरासंध बच भागे,रणछोर फँस गए,
द्वारिकाधीश बनकर तब द्वारिका के हो गए।

शयामन्तकमणि खातिर जामवंत युद्ध किए,
पुत्रीजामवंती को प्रभु चरणों में सौंप दिए।।

शिशुपाल के अपशब्दो को गिन गिन,
माधव मुस्काए,गणना सौ के पास गया।
कान्हाई ने समझाया, दे डाली चेतावानी।
पार सौ होते ही शीश को काट लिया।।

रुक्मणि ने पत्र भेज, रक्षा को बुलाया वहाँ ,
उसका हरण किया,शादी का मंडप था जहाँ।
मित्र सुदामा की दुखः निर्धनता दूर किया,
मुट्ठीभर चावल, गोविंदा ने मित्रता निभाया।।

पांडव पुत्र पंच मोहन को प्रभु मानते,
ईश्वर का रूप हैं ये, थे वे पहचानते।
चीरहरण था किया,कौरवों ने धोखे से,
रखा द्रोपदी की लाज, हरि ने वस्त्र से।।

कुरुक्षेत्र के युद्ध भूमि मेंबड़े बड़े महारथी,
पांडवों के साथ मधूसुदन अर्जुन के सारथी
अर्जुन को ज्ञान दिया,गीता उपदेश का ,
दिव्य रूप दिखलाया सर्वत्र त्रिदेव का।।

ऋषियों का श्राप यदुवंश पर भारी,
गए बैंकुठ द्वारिका के सभी नर नारी।
लगा तीर पांव में जगत पालक को,
सिधारे बलराम संग अपने धाम को।।

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