जीता हूँ अगर मैं वतन के लिए , हाँ वतन ही मेरी जिंदगी है
साहित्य।
(शेर) – जाकर रहूँ गुरबत में भी , लगता है दिल वतन में ।
मरना है तेरी गोद में , यही ख्वाब है मेरे दिल में ।।
मर भी जाऊं अगर मैं वतन के लिए , यह वतन से मेरी दिल्लगी ।
जीता हूँ अगर मैं वतन के लिए , हाँ वतन ही मेरी जिंदगी है ।।
मर भी जाऊं अगर मैं वतन के लिए ————–।।
ऑंखे खोली तेरी गोद में ही , तुझपे मैंने जन्म यह पाया । तुने ममता से मुझको पाला, साथ तेरा है बनकर साया ।।
मैं करता हूँ पूजा तेरी अगर , यह मेरा फर्ज और सादगी है।
मर भी जाऊं अगर मैं वतन के लिए ————–।।
बहुत अहसान मुझपे है तेरे , नहीं अहसान मैं कर रहा हूँ ।
खयाल तेरा यह क्या कम है , आजादी से मैं जी रहा हूँ ।।
करता हूँ मैं तारीफ तेरी अगर , क्यों किसी को नाराजगी है ।
मर भी जाऊं अगर मैं वतन के लिए ————।।
जन्म फिर से अगर मेरा होवे , करता हूँ मैं खुदा से यह मिन्नत ।
तेरा ही मुझको आँचल मिले तब , और मिले मुझको तेरी यह जन्नत ।।
देखता हूँ अगर ख्वाब तेरे ,मेरे दिल की यह बन्दगी है ।
मर भी जाऊं अगर मैं वतन के लिए ————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार –
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847