Surya Satta
राष्ट्रीय

कैसे कहे आरएसएस स्वतंत्रताआंदोलन से नहीं जुड़ा था?

( दिनेश प्रसाद सिन्हा, साउथ अफ्रीका से)
नई दिल्ली। विचारकों और इतिहासकारों मे विभेद है कि आरएसए का भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान रहा है या नहीं ? कांग्रेस तथा विपक्ष भाजपा को इस पर कटाक्ष करती है . लेकिन यह सत्य हैं कि अनेको स्वतंत्रता सेनानीयों के बारे में आज भी भारत के सभी इलाकों में स्थानीय रूप संवाद होता है जिनके बारे राष्ट्रीय स्तर सुचना का अभाव रहा है. उसमें अनेक संघ से भी जुड़े रहे हैं. दुर्भाग्यवश इस पर शासकों ने चुप्पी छाई रही हैं.

1942 में कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का दिया था नारा

सरकारी दस्तावेज खंगालने पर ज्ञात होता है कि आठ अगस्त 1942 को गोवलिया टैंक मैदान, मुंबई पर कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था. महाराष्ट्र के अमरावती, वर्धा, चंद्रपुर में विशेष आंदोलन हुआ. इस आंदोलन का नेतृत्व करने में तब संघ के अधिकारी दादा नाइक, बाबूराव, अण्णाजी सिरास ने अहम भूमिका निभाई थी. गोली लगने पर संघ के स्वयंसेवक बालाजी रायपुरकर ने बलिदान दिया था.
डाँ केशव राव बलीराम हेडगेवार जो जनसंघ के स्थापक थे. वे असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आदोलन में सक्रिय भाग लिया था. हेडगेवार पहले कांग्रेस से जुड़े हुए थे और 1920 के नागपुर अधिवेशन में एक प्रांतीय नेता के तौर पर पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव दिया था, जिसे कांग्रेस ने उस वक्त अस्वकृत कर दिया.

असहयोग आंदोलन में डॉ. हेडगेवार ने निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका

1921 में प्रांतीय कांग्रेस की बैठक में क्रांतिकारियों की निंदा करने वाला प्रस्ताव रखा गया था. तब डॉ. हेडगेवार के जबर्दस्त विरोध के कारण प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था. 1921 में महात्मा गांधी की अगुवाई में चले असहयोग आंदोलन में डॉ. हेडगेवार ने महती भूमिका निभाई थी. देश को स्वाधीन कराने के लिए अन्य क्रांतिकारियों की तरह वह जेल जाने से भी नहीं चूके. 19 अगस्त 1921 से 11 जुलाई 1922 तक कारावास में रहे इसके प्रमाणीत दस्तावेज है. जेल से बाहर आने के बाद 12 जुलाई को नागपुर में उनके सम्मान में आयोजित सार्वजनिक समारोह में कांग्रेस के नेता मोतीलाल नेहरू, राजगोपालाचारी जैसे अनेक नेता मौजूद थे.
हेडगेवार से मिलने सुभाष चंद्र बोस भी आए थे और फॉरवर्ड ब्लॉक के लिए सहयोग मांगा था. इसके अलावा क्रांतिकारी दल अनुशीलन समिति की भी सहायता संघ के स्वयंसेवकों ने की थी. जब क्रांतिकारियों को अपने उद्देश्यों के लिए छिपना होता था तो उनका सहयोग संघसेवक करते थे. इसके अलावा 1929 में जब लाहौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में पूर्व स्वराज का प्रस्ताव पास किया गया. और 26 जनवरी 1930 को देश भर में तिरंगा फहराने का आह्वान किया था तो देश भर की संघ की सभी शाखाओं में भी तिरंगा झंडा फहराया गया था. इस तरह संघ में तिंरगा नही फहराने का भी भ्रम बना हुआ हैं.
 राजस्थान में प्रचारक जयदेव पाठक, विदर्भ में डॉ अण्णासाहब देशपांडेय, छत्तीसगढ़ में रमाकांत केशव देशपांडेय, दिल्ली में वसंतराव ओक, पटना में कृष्ण वल्लभ प्रसाद नारायण सिंह, दिल्ली में चंद्रकांत भारद्वाज और पूर्वी उत्तर प्रदेश में माधवराव देवड़े, उज्जैन में दत्तात्रेय गंगाधर कस्तूरे ने बढ़चढ़कर भाग लिया था. जिनके बारे में दस्तावेजी प्रमाण मौजुद है.
लेकिन ऐसे अनेको बलिदानी सरकारी दस्तावेजों में दफन हो कर रह गए है चाहे वो संघ या कांग्रेस से जुड़े रहे हो.यदि इस पर इतिहासकार लेखक कार्य करें तो चौकाने वाले तथ्य सामने आएगें. लेकिन सरकारो ने कभी इस पर ईमानदारी प्रयास नही किया. हालत तो यह है कि हेडगेवार के प्रमाणीत तथ्यों के बावजुद उन्हें अंग्रेजों के लड़ाई से अलग ज्यादा प्रचारित किया गया. आप अगर अपने अगल बगल में भी झांके तो पायेगें अनेको बलिदानी हैं. लेकिन वो स्थान नही मिल सका जिसके वे हकदार रहे है.
राजनितीक दलो में पछाड़े का होड़ में राष्ट्र की थाती की ज्ञान से सभी वंचित हैं .

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