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बाजरा आधारित उत्पादों के प्रोत्साहन पर 2026-27 तक ₹ 800 करोड़ खर्च करेगा केंद्र

बाजरे की खेती से होगी किसानों की बल्ले-बल्ले

बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के लिए योगी सरकार के पास मुकम्मल कार्ययोजना

लखनऊ : बाजरे की खेती करने वाले किसानों की अब बल्ले-बल्ले होने वाली है. केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय 2026 से 2027 के दौरान बाजरे पर आधारित उत्पादों के प्रोत्साहन पर 800 करोड़ रुपये खर्च करेगा. ये उत्पाद रेडी टू ईट और रेडी टू सर्व दोनों रूपों में होंगे.

 

सर्वाधिक बाजरा उत्पादक राज्य उप्र को होगा सर्वाधिक लाभ

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की सभी योजनाओं का सर्वाधिक लाभ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली योगी सरकार को मिलेगा. खासकर बाजरा को लेकर। इसकी कई वजहें हैं. मुख्यमंत्री योगी निजी तौर पर खेतीबाड़ी एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में रुचि रखते हैं. इसीलिए उनकी पहल पर इंटरनेशनल मिलेट ईयर को सफल बनाने की कार्ययोजना, इसकी शुरुआत के करीब छह महीने पहले ही बन चुकी थी. इसके अलावा मोटे अनाजों, खासकर बाजरे की खेती इस राज्य की परंपरा रही है। उत्तर प्रदेश में देश का सर्वाधिक बाजरा पैदा होता है. बेहतर प्रजाति के बीज, फसल संरक्षा के सामयिक उपायों के जरिये इसे और बढ़ाना संभव है. इन संभावनाओं के नाते ही बाजरे की खेती भी संभावनाओं की खेती हो सकती है.

 

विदेशी मुद्रा भी लाएगा अपना बाजरा

 

बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों के निर्यात पर भी सरकार का फोकस है। खाद्यान्न उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने उन 30 देशों को चिन्हित किया है, जिनमें निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं. इन सभी मांगों को पूरा करने के लिए मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने के लिए 21 राज्यों को चिन्हित किया गया है. उल्लेखनीय है कि देश के उत्पादन का करीब 20 फीसदी बाजरा उत्तर प्रदेश में होता है. प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन देश के औसत से अधिक होने के कारण इसकी संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

 

तब तो और भी जब अच्छी-खासी पैदावार के बावजूद सिर्फ 1 फीसदी बाजरे का निर्यात होता है. निर्यात होने वाले में अधिकांश साबुत बाजरे होते हैं. लिहाजा प्रसंस्करण के जरिये इसके निर्यात और इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. अद्यतन आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में सर्वाधिक, करीब 29 फीसदी रकबे में बाजरे की खेती होती है. इसके बाद महाराष्ट्र करीब 21 फीसदी रकबे के साथ दूसरे नंबर पर है. कर्नाटक 13.46 फीसदी, उत्तर प्रदेश 8.06 फीसदी, मध्य प्रदेश 6.11फीसदी, गुजरात 3.94 फीसदी और तमिलनाडु में करीब 4 फीसदी रकबे में बाजरे की खेती होती है.

उत्तर प्रदेश की संभावना इस मामले में बेहतर है, क्योंकि यहां प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन राष्ट्रीय औसत (1195 किग्रा ) की तुलना में 1917 किग्रा है. प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन के मामले में तमिलनाडु नंबर एक (2599 किग्रा) पर है.

 

खेती के उन्नत तौर तरीके से उत्तर प्रदेश के उपज को भी इस स्तर तक लाया जा सकता है. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार लगातार इस बाबत प्रयासरत भी है. साल 2022 तक यूपी में बाजरा की खेती का रकबा कुल 9.80 लाख हेक्टेयर है, जिसे बढ़ाकर 10.19 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य है. साथ ही उत्पादकता बढ़ाकर 25.53 क्विंटल प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. किसानों को इसका वाजिब दाम मिले, इसके लिए सरकार 18 जिलों में प्रति कुन्तल 2350 रुपये की दर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर इसकी खरीद भी कर रही है.

 

गेहूं, धान, गन्ने के बाद प्रदेश की चौथी फसल है बाजरा

 

गेहूं, धान और गन्ने के बाद बाजरा उत्तर प्रदेश की चौथी प्रमुख फसल है. खाद्यान्न एवं चारे के रूप में प्रयुक्त होने के नाते यह बहुपयोगी भी है. पोषक तत्वों के लिहाज से इसकी अन्य किसी अनाज से तुलना ही नहीं है, इसलिए इसे “चमत्कारिक अनाज”, “न्यूट्रिया मिलेट्स”, “न्यूट्रिया सीरियल्स” भी कहा जाता है.
2018 में भारत द्वारा मिलेट वर्ष मनाने के बाद बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों की खूबियों से किसान व अन्य लोग भी जागरूक हुए हैं. नतीजतन बाजरे के प्रति हेक्टेयर उपज, कुल उत्पादन और फसल आच्छादन के क्षेत्र (रकबे) में लगातार वृद्धि हुई.

 

हर तरह की भूमि में ले सकते हैं फसल

 

इसकी खेती हर तरह की भूमि में संभव है. न्यूनतम पानी की जरूरत, 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी परागण, मात्र 60 महीने में तैयार होना और लंबे समय तक भंडारण योग्य होना इसकी अन्य खूबियां हैं. चूंकि इसके दाने छोटे एवं कठोर होते हैं, ऐसे में उचित भंडारण से यह दो साल या इससे अधिक समय तक सुरक्षित रह सकता है. इसकी खेती में उर्वरक बहुत कम मात्रा में लगता है. साथ ही भंडारण में भी किसी रसायन की जरूरत नहीं पड़ती. लिहाजा यह लगभग बिना लागत वाली खेती है.

 

पोषक तत्वों का खजाना है बाजरा

 

बाजरा पोषक तत्वों का खजाना है. खेतीबाड़ी और मौसम के प्रति सटीक भविष्यवाणी करने वाले कवि घाघ भी बाजरे की खूबियों के मुरीद थे. अपने दोहे में उन्होंने कहा है, “उठ के बजरा या हँसि बोले। खाये बूढ़ा जुवा हो जाय”. बाजरे में गेहूं और चावल की तुलना में 3 से 5 गुना पोषक तत्व होते हैं. इसमें ज्यादा खनिज, विटामिन, खाने के लिए रेशे और अन्य पोषक तत्व मिलते हैं। लसलसापन नहीं होता. इससे अम्ल नहीं बन पाता। लिहाजा सुपाच्य होता है। इसमें उपलब्ध ग्लूकोज धीरे-धीरे निकलता है.

 

लिहाजा यह मधुमेह (डायबिटीज) पीड़ितों के लिए भी मुफीद है. बाजरे में लोहा, कैल्शियम, जस्ता, मैग्निशियम और पोटाशियम जैसे तत्व भरपूर मात्रा मे होते हैं. साथ ही काफी मात्रा में जरूरी फाइबर (रेशा) मिलता है. इसमें कैरोटिन, नियासिन, विटामिन बी6 और फोलिक एसिड आदि विटामिन मिलते हैं. इसमें उपलब्ध लेसीथीन शरीर के स्नायुतंत्र को मजबूत बनाता है. यही नहीं बाजरे में पोलिफेनोल्स, टेनिल्स, फाइटोस्टेरोल्स तथा एंटीऑक्सिडैन्टस प्रचुर मात्रा में मिलते हैं. यही वजह है कि सरकार ने इसे न्यूट्री सीरियल्स घटक की फसलों में शामिल किया है. अपने पोषण संबंधित इन खूबियों की वजह से बाजरा कुपोषण के खिलाफ जंग में एक प्रभावी हथियार साबित हो सकता है.

 

फसल के साथ पर्यावरण मित्र भी है बाजरा

 

बाजरे की फसल पर्यावरण के लिए भी उपयोगी है. यह जलवायु परिवर्तन के असर को कम करती है. धान की फसल जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है. पानी में डूबी धान की खड़ी फसल में जमीन से ग्रीन हाउस गैस निकलती है. गेहूं तापीय संवेदनशील फसल है. तापमान की वृद्धि का इस पर बुरा असर पड़ता है. क्लाइमेट चेंज के कारण धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में एक समय ऐसा भी आ सकता है, जब गेहूं की खेती संभव ही न हो. उस समय बाजरा ही उसका सबसे प्रभावी विकल्प हो सकता है, इसलिए इसकी खेती को भविष्य की भी खेती कहते हैं.

 

बिना लागत की खेती

 

बाजरे की खेती में उर्वरकों की जरूरत नहीं पड़ती. इसकी फसल में कीड़े-मकोड़े नहीं लगते. अधिकांश बाजरे की किस्में भंडारण में आसान हैं. साथ ही इसके भंडारण के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ती. इसी तरह नाम मात्र का पानी लगने से सिंचाई में लगने वाले श्रम एवं संसाधन की भी बचत होती है.

 

भारत के प्रस्ताव पर यूएनओ ने 2023 को घोषित किया ईयर ऑफ मिलेट

 

मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संबोधन में मिलेट रिवोल्यूशन के क्रांति की जरूरत का जिक्र कर चुके हैं. उनकी ही पहल पर 2018 में देश में मिलेट ईयर मनाया गया था. बाद में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) को इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का अनुरोध किया था. भारत के ही प्रस्ताव पर 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है.

उल्लेखनीय है कि बढ़ते शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण, बढ़ती आबादी की आवासीय जरूरतों, सड़क, बांध, एयरपोर्ट आदि के लिए जमीन की जरूरत पड़नी ही है. लिहाजा जमीन का रकबा लगातार घटना है. ऊपर से मौसम की अप्रत्याशिता. आने वाले समय में खाद्यान्न एवं पोषण सुरक्षा के साथ क्लाइमेट चेंज के प्रति संवेदनशील धान एवं गेहूं जैसी परंपरागत फसलों के लिए भी गंभीर चैलेंज है. इसका समाधान कम लागत, कम पानी में होने वाले बाजरे जैसे मोटे अनाज ही हैं.

 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि अपने पौष्टिक गुणों के कारण चमत्कारिक अनाज कहे जाने वाले बाजरे की खेती को यथासंभव प्रोत्साहन दिया जाय. यही वजह है कि विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद अगले 100 दिन, 6 माह, दो साल और पांच साल के काम का लक्ष्य तय करने के लिए सेक्टरवार मंत्री परिषद के समक्ष प्रस्तुतिकरण लिया था.

 

इसी क्रम में सामाजिक सेक्टर के प्रस्तुतिकरण के दौरान उन्होंने निर्देश दिया था कि न्यूट्रीबेस्ड फूड बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद और वितरण की व्यवस्था की जाए. यह प्रमुख बाजरा उत्पादक 18 जिलों में हो भी रहा है. सीएम योगी के निर्देश पर अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष-2023 में बाजरा एवं ज्वार सहित लुप्तप्राय हो रही कोदो और सावां की फसल को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि विभाग ने कई योजनाएं तैयार की हैं. बाजरे की खेती के लिए किसानों को इसकी खूबियों के प्रति जागरूक करने की जरूरत है.

 

प्रसंस्करण की काफी संभावनाएं

 

बाजरे से चपातियां, ब्रेड, लड्डू, पास्ता, बिस्कुट, प्रोबायोटिक पेय पदार्थ बनाए जाते हैं। छिलका उतारने के बाद इसका प्रयोग चावल की तरह किया जा सकता है। इसके आटे को बेसन में मिलाकर इडली, डोसा, उत्पम, नूडल्स आदि बनाया जा सकता है.

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