Surya Satta
सीतापुर

साहित्य सृजन संस्थान द्वारा आयोजित किया गया पुस्तक लोकार्पण व काव्य समारोह

सीतापुर। “कविता मन का संवेदनशील संवाद है. रचनाकार जीवन की गहन अनुभूतियों को भाषा, शिल्प, शब्द के संसाधनों से प्रखर अभिव्यक्ति करने का माध्यम बनाता है.
यह बात संस्थाध्यक्ष सन्दीप मिश्र “सरस” ने अपने उद्बोधन में साहित्य सृजन संस्थान द्वारा भयमोचिनी दुर्गा माता मंदिर ग्राम सरैया (बिसवाँ) में आयोजित सीतापुर के रचनाकर अंबुज दीक्षित “एकांत पथिक” की पुस्तक “बंजर के रुख” के लोकार्पण समारोह में कही.
कार्यक्रम में अतिथि के रूप में पंकज गुप्ता, अभिषेक अग्रवाल, राकेश शुक्ला (प्रधानाचार्य), शिवकुमार खेतान मंच पर उपस्थित रहे.
कार्यक्रम का शुभारंभ ललित शर्मा की वाणी वंदना से प्रारंभ हुआ. एवम संचालन रामकुमार सुरत के द्वारा किया गया.
मुख्य वक्ता डाक्टर शैलेष गुप्त वीर ने लोकार्पित पुस्तक की सम्यक विवेचना की तत्पश्चात अपने काव्य पाठ्यक्रम में पढ़ा- आर्य तुम्हारे त्रेता की, व्यर्थ हुई सब शिक्षा. राम तुम्हारी आने की फिर है हमे प्रतीक्षा.
अंबुज दीक्षित “एकांत पथिक” ने अपने काव्य पाठ के क्रम में कहा- अश्क अभी आंखों में अटके हुए थे. शब्द अभी जुबा में उलझे हुए थे. रोशनी गायब थी अभी उसके लिए, पर फानूसों से उजाले टपके हुए थे
रामकुमार सुरत जी ने पढ़ा- नशेमन, नशे में न झूमा करो तुम। अकेली चमन में न घूमा करो तुम. बहुत पास आकर हमारे अधर को, गुलाबी अधर से न चूमा करो तुम.
रामदास रतन की रचना सराही गयी- करें किस पर भरोसा दगा अपने ही देते हैं. जरूरत पड़ने पर ठेंगा दिखा अपने ही देते हैं.
सतीश चन्द्र कौशिक ने पढ़ा- निज मन से जो भी करो, सादा बढ़ावै शाम. करम सहज सांचा करो, होवै नित कल्याण.
श्रृंगार के सुमधुर कवि अरविंद सिंह मधुप ने मंत्रमुग्ध किया – बदरिया काहे मन तरसावे.
नीलेश यादव ने सुनाया- गिराकर बिजलियों से आप मेरा घर जलाते हो, ओढ़कर धर्म की चादर, नफरत बढ़ाते हो.
ललित शर्मा ने प्रभावित किया- आज दामन छुड़ाने लगे है सभी. हो चले है पराए जो थे अपने कभी. कितनी बेदर्द सी बन गई जिंदगी, जुर्म किसने किया किसको ताने मिले.

धर्मेन्द्र त्रिपाठी धवल ने पढ़ा

कभी कभी मै कुछ शब्दों को जोड़ लेता हूं. कभी कभी मैं भावों को मोड़ लेटा हूं. धवल साधक हूं मै, मां वागीश्वरी का, कभी कभी मैं कलेजा तक निचोड़ लेता हूं.
नैमिष सिंह ने कहा-है भारत के वीर पूत बलिदान न खाली जाएगा. याद तुम्हारी आएगी, जग सारा अश्रु बहाएगा.
रामानुज वर्मा सीतापुरी ने पढ़ा
चौपट भई कहानी ददुआ, कैसे करे किसानी ददुआ.
कार्यक्रम में अभिनव रंजन मिश्र, मयंक मिश्र सहर,  कृष्ण मुरारी खरोंच, शिवानंद दीक्षित प्रेमी, आमोद मिश्र, विशाल रस्तोगी, हर्षित श्रीवास्तव, शिवेंद्र नाथ मिश्र ने भी प्रभावी काव्यपाठ किया.
संस्थान द्वारा युवा कवि अंबुज दीक्षित का सारस्वत सम्मान किया गया और अतिथियों सहित युवा रचनाकारों को स्मृति चिन्ह सौंपा गया.
कार्यक्रम में गंगा स्वरूप मिश्र, रवींद्र मिश्र, धर्मेंद्र अवस्थी, फुरकान अली, मनोज गुप्त, आदि की उपस्थिति महत्वपूर्ण है. कार्यक्रम आयोजक हीरालाल यादव ने सभी आगन्तुकों का आभार व्यक्त किया.

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