Surya Satta
सीतापुर

सप्तमी के दिन से पंद्रह दिनो तक डेगरा में भब्य मेले का  होता है आयोजन

सीतापुर। जनपद सीतापुर के नैमिषारण्य तीर्थ से लगभग 27 किलोमीटर दूर डेगरा में स्थित अति प्राचीन बाबा महासेन महाराज का स्थान मौजूद है. वही नैमिषारण्य से 22 किलोमीटर दूर तेरवा गांव में महासेन बाबा का जन्म स्थान बताया जाता है तेरवा गांव के उत्तर पश्चिम में महासेन बाबा का प्राचीन स्थान मौजूद हैं डेंगरा में आसाढ़ माह में शुक्लपक्ष के सप्तमी के दिन से पंद्रह दिनों तक भब्य मेले का आयोजन होता है. वही तेरवा गांव में सप्तमी के दिन देवाई, मुन्डन आदि कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. देवाई के दौरान बकरे की बाली दी जाती है यह उसका कांन काट कर छोड़ दिया जाता है.
कहा जाता है कि मुगलशासन काल के दौरान कसमंडा स्टेट के राजा महोठा सिंह की पुत्री महोठे रानी का विवाह जनपद विकास खण्ड गोंदलामऊ क्षेत्र के तेरवा स्टेट के राजा महासेन के साथ हुई थी. विवाह के कुछ वर्षों बाद मुगलों से युद्ध के दौरान राजा महासेन वीरगति को प्राप्त हो गये थे. उसी दौरान मुगल सैनिक महोठे रानी को ले जाने के लिए कसमंडा के महोली गांव पहुचे थे.जहां रानी को पासी समुदाय के सैनिकों ने रक्षा करते हुए शहीद हो गये. कुछ पासी सैनिक रानी को सुरक्षित स्थान पर ले आये. कमलापुर व महोली गांव के दक्षिण एक स्थान पर महोठे रानी ने अग्नि प्रज्वलित कर सती हो गई.
यह स्थान उस समय भीषण जंगल झाडियों से घिरा हुआ था. लगभग दो सौ वर्ष पूर्व कसमंडा स्टेट के ततकालीन राजा जवाहर सिंह को महोठे रानी ने स्वप्न दिया कि कमलापुर के दक्षिण जंगल के बीचों बीच एक मन्दिर का निर्माण कराओ.जिसके बाद उस जंगल की सफाई के दौरान महोठे रानी की एक मूर्ति मिली. जिसको मन्दिर बनाकर स्थापित किया गया. उसी स्थान को अब लोग महोठे रानी मंदिर के नाम से जानते हैं यहां इस मंदिर प्रांगण में प्रतिवर्ष चैत्र माह की पूर्णमासी से मेले का आयोजन कसमंडा स्टेट के राज परिवार द्वारा कराया जाता है. जो एक माह तक चलता है.जहां प्रदेश के कोने कोने से सभी समुदाय के भारी संख्या में लोग पहुचते है. इस माह में जो भी लोग यहां आकर सन्तान की प्राप्ति की मनौवत मागते उनकी मनौवत एक वर्ष में पूर्ण हो जाती है. ऐसा लोगों का पूर्ण विस्वाश है. मनौवत पूर्ण होने के बाद लोग यहां सवा किलो ईट के बराबर मावे(खोवा) से बनी ईट का प्रसाद जढाते है.वही लोग इसी स्थान पर आकर बच्चों के मुन्डन संस्कार भी कराने पहुचते है.जिस से यहां वर्ष भर लोगों का आना जाना बना रहता है.
 सप्तमी के दिन क्षेत्र के बछिल ठाकुरो के यहाँ जश्न जैसा माहौल रहता है जिसमें दूर दूर से आये रिस्तेदार भी शामिल होते है. साथ में क्षेत्र के दर्जनों गावों में सभी समाज के लोगो के यहां भी सप्तमी के दिन तवा नही चढ़ाया जाता है और हर घर मे पकवान बनते है.
गोंदलामऊ ब्लाक के तेरवा, गैथा, कोठावां, पारा, पट्टी, गोंदलामऊ, महमदपुर, देवरीकैल, गोपालपुर पूर्वी, तारापुर, इस्माइलगंज, गेंधारिया, कुशौली, ककरघटा, गांगूपुर, असल, कुचलाई, करसेण्डा, गगोय, महेशपुर, मछरेहटा ब्लाक के अनोगी, काकोरी, रामपुर, लोहंगपुर, हरिहरपुर, , सहित दर्जनों गांवों में बाछिल ठाकुर परिवार निवाश करते है.

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