Surya Satta
उत्तर प्रदेश

84 कोसी परिक्रमा के प्रथम पड़ाव का जाने क्या है पौराणिक महत्व

सीतापुर। सतयुग में जब महर्षि दधीचि ने इंद्रदेव को अपनी हड्डियों का दान करने से पूर्व नैमिषारण्य क्षेत्र के 84 कोसी परिधि की परिक्रमा की थी. इस दौरान उन्होंने 33 कोटि देवी-देवताओं व तीर्थों का दर्शन किया. महर्षि दधीचि ने जिन-जिन स्थानों पर रात्रि विश्राम किया, वह पड़ाव स्थल के नाम से जाने जाते हैं. महर्षि दधीचि प्रथम रात्रि जिस स्थान पर रुके, वह स्थना सीतापुर जिले के विकास खंड गोंदलामऊ क्षेत्र के कोरौना गांव में प्रथम पड़ाव कहा जाता है. त्रेता युग में भगवान श्री राम ने अपने परिवार के साथ इस क्षेत्र की परिक्रमा की थी. वहीं, द्वापर में भगवान श्री कृष्ण व पांडवों ने भी नैमिषारण्य क्षेत्र के 84 कोस की परिक्रमा की थी.

त्रेतायुग में प्रथम पड़ाव स्थल पर भगवान श्रीराम ने किया था अश्वमेघ यज्ञ

त्रेतायुग में भगवान श्रीराम को उनके अनुज लक्ष्मण ने अश्वमेध यज्ञ कराने की सलाह दी थी. इसके बाद अश्वमेध यज्ञ की तैयारियां की जाने लगीं. भगवान श्रीराम ने अपने कुल पुरोहित वशिष्ठ जी से यज्ञ के लिए सबसे उपयुक्त स्थान के विषय में पूछा. वशिष्ठ ने नैमिषारण्य क्षेत्र को सबसे उपयुक्त स्थान बताया था.
इसके बाद नैमिषारण्य क्षेत्र के कारण्डव वन में यज्ञ किया गया. इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण के पेज संख्या 816 व स्कन्द पुराण के प्रथम अध्याय में मिलता है. गोमती नदी के कुछ उत्तर की ओर वह स्थान त्रेतायुग में कारन्डव वन था जो आज कोरौना के नाम से जाना जाता है. यहां भगवान श्रीराम द्वारा अश्वमेध यज्ञ किया गया था. भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग आज भी प्रमाण के तौर पर यहां मौजूद है. जिस स्थान पर अश्वमेध यज्ञ किया गया, वहां यज्ञ वाराह कूप भी मौजूद है. इस कूप का जीर्णोद्धार 1984 में स्वामी अभिलाषानंद ट्रस्ट द्वारा कराया गया था. इससे पूर्व भी तत्कालीन राजा-महराजाओं द्वारा कूप का जीर्णोद्धार समय-समय पर कराया जाता रहा. इस कारण यह पौराणिक यज्ञ वाराह कूप आज भी अस्तित्व में है. वहीं, अहिल्या तीर्थ व अरुंधती कूप भी मौजूद है.
कुलगुरू महर्षि गर्गाचार्य से मिलने नैमिषारण्य पहुंचे थे द्वारिकाधीशद्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण अपने कुलगुरू महर्षि गर्गाचार्य से जब मिलने के लिए अपनी चतुरंगी सेना के साथ नैमिषारण्य पहुंचे तो उन्होंने नैमिषारण्य क्षेत्र के 84 कोस परिक्रमा के प्रथम पड़ाव स्थल पर अपना डेरा डाला. यहां से अपने कुलगुरू गर्गाचार्य से मिलने उनके अश्राम पैदल पहुंचे. जहां भगवान श्रीकृष्ण ने डेरा डाला था, वहां राधा व कृष्ण की प्रचीन मूर्ति स्थापित है. उस मंदिर को द्वारिकाधीश के नाम से जाना जाता है.

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